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31. दिल्ली प्रस्थान और गिरफ्तारी

गुरूदेव ने तब कश्मीरी पण्डितों को औरँगजेब के पास सन्देश देकर दिल्ली भेजा कि उसके धर्म परिवर्तन अभियान के विषय में गुरू नानक देव के नौवें उत्तराधिकारी श्री गुरू तेगबहादुर साहिब जी उससे बातचीत करना चाहते हैं। बस फिर क्या था। इस सन्देश के प्राप्त होते ही औरँगजेब अति प्रसन्न हुआ। उसका विचार था कि समस्त पंण्डितों व हिन्दुओं को इस्लाम में लाने की राह मिल गई है। मुगल सम्राट औरँगजेब के मन में एक विचार उत्पन हुआ कि यदि वह समस्त भारत की बहुमत हिन्दू जनता को इस्लाम स्वीकार करने के लिए विवश कर दें तो उसका साम्राज्य कभी भी समाप्त नहीं होगा। इस विचार को साकार करने के लिए वह बहुत से उपाय सोचने लगा। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसने सर्वप्रथम जोरज़बरदस्ती की, तथा लोगों को मुसलमान बनाने के लिए बहुत से हथकण्डों का इस्तेमाल किया। फलस्वरूप कई स्थानों पर विद्रोह भी हुए। इस दमनचक्र में बहुत से सैनिक भी मारे गये। इस पर उसके मँत्रियों ने उसे परामर्श दिया कि बल प्रयोग द्वारा धर्म परिवर्तन में खतरे अधिक हैं। इससे प्रयोजन की सफलता में भी शँका बनी रहेगी। अतः उन्हें युक्ति से काम लेना चाहिए और यह नीति बनाई गई कि हिन्दू सभ्यता के मूल स्त्रोत कश्मीर के यदि हिन्दू विद्वानों ने इस्लाम धारण कर लिया तो उनके अनुयायी स्वयँ ही मुसलमान हो जाएँगे। जिससे वह लम्बा जोखिम भरा कार्य बहुत सरल हो जाएगा। किन्तु दूसरी ओर हिन्दू धर्म में फूट और दुर्बलता इतनी अधिक थी कि उनकी सुख-शाँति समाप्त हो चुकी थी। क्योंकि उनमें एकता और सहयोग का बल था ही नहीं। जिससे वे अपने बचाव के उपाय सोच सकें। अतः इस्लाम में दाखिल होकर वे विजयी और शासक समुह के सदस्य बन जाते थे। उन्हें हिन्दू धर्म की दुर्बलताओं, ऊँच-नीच के भेदभाव, घृणा आदि से सदा के लिए छुटकारा मिल जाता था। इसी कारण शुद्र जातियों ने हिन्दू धर्म की तुलना में इस्लाम को रहमत समझा और प्रसन्नता के साथ इस्लाम में प्रवेश करने लगे। इन प्रवृतियों के कारण उनको बलात् मुसलमान बनाने की ओर औरँगजेब का कोई विशेष ध्यान न था। वे तो अपनी इच्छा से ही अपनी परतँत्रता से स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए चले आते थे। अतः औरँगज़ेब तो केवल उच्च वर्ग को, स्वर्ण जातियों को बलात् मुस्लमान बनाना चाहता था। यही कारण था कि उसने कश्मीर में मुसलमान बनाने के लिए सारी शक्ति खर्च कर दी। उस समय तक सिक्खों की दशा प्रयाप्त मात्रा में अच्छी और मजबूत हो चुकी थी। उनका कुछ दबदबा भी बन गया था। उनका अपना धर्म प्रचार भी कायम था। श्री गुरू हरिगोबिन्द साहिब, समय की सरकार से टक्कर लेकर विपक्षी सेनाओं को कई बार हरा भी चुके थे। शायद इसी कारण कश्मीरी ब्राहमण अपनी दुःखमयी कथा लेकर श्री गुरू तेग बहादूर साहिब जी के पास आये थे। औरँगज़ेब ने तुरन्त श्री आनंदपुर साहिब जी में अपने दूत भेजे और श्री गुरू तेगबहादुर साहिब जी को दिल्ली लेकर आने को कहा। उन दूतों ने गुरूदेव को औरँगज़ेब का सन्देश सुनाया और कहा वे उनके साथ दिल्ली तशरीफ ले चले। उत्तर में गुरूदेव ने कहा– उनके द्वारा औरँगज़ेब का सन्देश उन्हें मिल गया है वे स्वयँ ही दिल्ली पहुंच जाएँगे। अभी उन्हें आश्रम के कुछ आवश्यक कार्य निपटाने हैं इससे दूत दुविधा में पड़ गये किन्तु कुछ प्रमुख सिखों ने उन्हें समझाया कि गुरूदेव वचन के पूरे हैं वे चिंता न करें वे जल्दी ही दिल्ली पहुँचेगे। यह आश्वासन लेकर वे लौट गये। तद्पश्चात गुरूदेव ने प्रमुख सिक्खों की सभा बुलाई और उसमें निर्णय लिया गया कि गुरूदेव पहले उन स्थानों पर जाएँ, जहां औरँगजेब द्वारा जनता पर दमनचक्र चलाया जा रहा है भयभीत जनता को जागृत किया जाए और उनके साथ सहानुभूति प्रकट करके उनका मनोंबल बढ़ाया जाए। इस पर गुरूदेव ने घोषणा की, कि उनके पश्चात गुरू नानक देव जी की गद्दी के उत्तराधिकारी गोबिन्द राय जी होगें। परन्तु औपचारिकताएँ समय आने पर कर दी जाएँगी। जब गुरूदेव दिल्ली प्रस्थान करने लगे तो उन्होंने अपने साथ पाँच विशेष सिक्खों को साथ लिया, भाई मती दास जी, भाई दयाला जी, भाई सती दास जी, भाई गुरदित्ता जी तथा भाई उदै जी। किन्तु माता नानकी जी और पत्नी गुजरी जी बहुत वैराग्य करने लगी। तब गुरूदेव ने उन्हें ब्रहमज्ञान की बातें बताई और उनके विवेक को जागृत किया। परन्तु बहुत सी संगत साथ चलने लगी। इस पर गुरूदेव ने एक रेखा खींचकर सभी को आदेश दिया कि वे घरों को लौट जाए और उस रेखा से आगे न आये। इस प्रकार संगत वापस चली गई और गुरूदेव श्री आनंदपुर साहिब से पाँच सिक्खों समेत रोपड़ पहुँचे। गुरूदेव जब दिल्ली के लिए चलने वाले थे तो देश भर में यह बात फैल गई। यदि बादशाह श्री गुरू तेग बहादुर साहिब जी को मुसलमान बना ले, तो देश के सभी गैर मुसलमान अपना मजहब बदल लेंगे। इसी बात का स्पष्टीकरण करते हुए गुरूदेव लोगों को साँत्वना देते हुए आगे बढ़ने लगे। गुरूदेव रोपड़ से सैफाबाद पहुँचे। वहाँ उन्होंने लोगों की गल्तफहमियाँ दूर करते हुए उनको धीरज बँधाया और प्रभु पर भरोसा रखने को कहा। वहाँ पर आपके एक श्रद्धालु व्यक्ति सैयद सैफउल खान जी निवास रखते थे। आप उनके स्नेह के बन्धे कुछ दिन वहीं ठहरे रहे। फिर सैफाबाद से समाणा तथा कैथल, जींद, कनौड़ होते हुए आगे बढ़ने लगे। आप उन सभी स्थानों पर पहुँचे जहाँ की जनता पर औरँगज़ेब के आदेशों के अनुसार शासक वर्ग ने अत्याचार किये थे। इन अत्याचारों से पीड़ित कई स्थानों पर वहाँ के कबीलों ने विद्रोह किया था। उन लोगों ने गुरूदेव को बताया कि प्रशासन की तरफ से आदेश है कि जो हिन्दू इस्लाम स्वीकार नहीं करते उनके खेत जब्त कर लिये जाएँ और हिन्दुओं को सरकारी नौकरियों से निकाल दिया जाए उसके विपरीत यदि कोई हिन्दू इस्लाम स्वीकार करता है तो उसे सरकारी नौकरियाँ तथा उन्नति के सभी साधन उपलब्ध करवाए जाते हैं। यदि इस नीति के विरोध में कोई विद्रोह करता है तो उसे मृत्युदण्ड दिया जाता हैं। परिणामस्वरूप दमनचक्र में बहुत लोग मारे गये। गुरूदेव ने वहाँ की भयभीत जनता को आत्मज्ञान देकर उत्साहित किया। और जागृति अभियान बहुत सफल रहा जनसाधारण में नई चेतना उमड़ पड़ी और मृत्यु को वे एक खेल समझने लगे। गुरूदेव को श्री आनंदपुर साहिब जी से प्रस्थान किये बहुत दिन हो गये थे। दिल्ली में औरँगज़ेब उनकी बहुत बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा था। जब वे नहीं पहुँचे तो उसने गुरूदेव को खोजकर गिरफ्तार करके लाने का आदेश दिया और उनका पता ठिकाना बताने वाले को पुरस्कृत करने की घोषणा की। आगरे में एक निर्धन व्यक्ति जिसका नाम सयद हसन अल्ली था। उसने विचार किया कि यदि बादशाह द्वारा घोषित पुरस्कार की राशी उसे मिल जाए तो उसकी गरीबी और घरेलू मजबूरियाँ समाप्त हो जाऐगी। अतः वह हृदय से श्री गुरू तेगबहादुर साहिब जी की अराधना करने लगा कि ! यदि वह सच्चे मुर्शिद हैं तो उसकी पुकार सुनें और यह गिरफ्तारी उसके हाथों करवाएँ ताकि वह अपनी पोती का विवाह सम्पन कर सके। बस फिर क्या था गुरूदेव स्वयँ ही सैयद हसन के घर पहुँच गये परन्तु वह गुरूदेव के दीदार करके अपना लक्ष्य भूल गया वह प्रेम में सेवा करने में व्यस्त हो गया। गुरूदेव ने उसे कहा कि अब वे उसके हाथों गिरफ्तारी देना चाहते हैं ताकि उसे एक हजार रूपये की राशि प्राप्त हो सके परन्तु वह गुरूदेव के चरणों मे गिर पड़ा और विनती करने लगा कि अब उससे यह गुनाह मत करवाएँ वह तो केवल निर्धनता के कारण विचलित हो गया था। इस पर गुरूदेव ने युक्ति से काम लिया और उसके पोते को बुलाया जो कि भेड़ों को चराने का कार्य करता था। उसे एक दुशाला और एक हीरे की अँगूठी दी और कहा कि नगर में जाकर हलवाई से मिठाई खरीद लाओ। वह भोला गड़रिया, हलवाई से जब मिठाई खरीदने लगा तो हलवाई ने कीमती वस्तुएँ गड़रिये के पास देखकर उसे थाने में पकड़वा दिया। थानेदार को बालक गड़रिये ने सूचित कर दिया किया कि गुरूदेव हमारे यहाँ ठहरे हुए है। यह सूचना प्राप्त करते ही गुरूदेव को सैयद हसन अली के यहाँ सें गिरफ्तार कर लिया गया। इस प्रकार पुरस्कार की राशि हसन अली को दिलवा दी गई। गिरफ्तारी के समय तीन सेवकों ने भी अपनी गिरफ्तारी दी। अन्य सेवकों को गुरूदेव ने आदेश दिया कि वे बाहर रहकर जनसाधारण में जागृति लाने का कार्य करें तथा श्री आनंदपुर साहिब जी में परिवार के साथ सूचनाओं के आदानप्रदान से सर्म्पक बनाये रखें।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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