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18. इलाहाबाद (प्रयाग)

श्री गुरू तेग बहादुर साहब अपने काफिले सहित आगरा, इटावा, कानपुर होते हुए प्रयाग (इलाहाबाद) पहुँचे। आपका उद्देश्य तो आसपास के क्षेत्र के जनसाधारण से मिलकर गुरू नानक देव जी के सिद्धान्त (गुरमति) दृढ़ करवाना था। आपने सभी दर्शनीय स्थल देखे और त्रिवेणी घाट इत्यादि स्थानों पर कई यात्रियों तथा श्रद्धालुओं को मिले। सभी का मत था कि आप कुछ दिन यहाँ ठहरें, कुम्भ मेले को कुछ दिन शेष हैं। उन दिनों दूरदराज से जनता यहाँ आती है। इस प्रकार उस समय जनता से सीधा सम्पर्क करने में सरलता रहेगी। आप जी ने भक्तजनों के सुझाव के अनुसार आहीर मौहल्ले की एक हवेली में अपना निवास स्थान बनाया। यहाँ आपको आपकी माता नानकी जी ने शुभ सँकेत सुनाया कि तुम्हारी पत्नी श्रीमती गुजर कौर का पाँव भारी है अर्थात तुम पिता बनने वाले हो। इस सँकेत के प्राप्त होने पर गुरूदेव जी ने जनसाधारण के लिए लँगर (भण्डारा) लगा दिया। जैसे ही आपकी महिमा चारों ओर फैली। दूर दूर से जिज्ञासु आपसे आध्यात्मिक उलझनों का समाधान पाने के लिए आते। आप जी प्रतिदिन दरबार सजाते और उसमें अपने प्रवचनों के माध्यम से जनसाधारण को सन्देश देते कि हमें अपने श्वासों की पूँजी को बहुत ध्यान से प्रयोग करना चाहिए, कहीं व्यर्थ न चले जायें। आपका कथन है:

चेतना है तउ चेत लै निसि दिनि मै प्रानी ।।
छिनु छिनु अउध बिहातु है फूटै घट जिउ पानी ।।
हरि गुन गाहि न गावही मूरख अगिआना ।।
झूठै लालचि लागि कै नहि मरनु पछाना ।।
अजहु कछु बिगरिओ नहीं जो प्रभ गुन गावै ।।
कहु नानक तिह भजन ते निरभै पदु पावै ।।

इस प्रकार आपकी लोकप्रियता बढ़ती चली गई। आप वहाँ छः माह ठहरकर तत्पश्चात अपने कार्यक्रम अनुसार बिहार प्रस्थान कर गये।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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