17. गुरू भक्तों की प्रेम व श्रद्धा
भरी आराधनाएँ
ब्रह्मपुत्र नदी से आगे असम के क्षेत्र में सिक्ख सिद्धान्तों का जो बीज गुरू नानक
देव स्वयँ बो गये थे, गुरू तेग बहादुर जी मानव कल्याण के बहाने उसे ही पानी देने आये
हैं। वे जनसाधारण (श्रद्धालु) जो दूरी के कारण पँजाब नहीं जा सकते। दर्शनों की
अभिलाषा सँजोए बैठे हैं। अपने गुरूदेव के लिए किसी ने सुन्दर पलँग बनवाकर, उस पर
मखमली तकिए सजा दिए हैं और प्रतिज्ञा कर रखी है कि जब तक गुरू साहब उन पर विराजमान
होकर दर्शनों से कृतार्थ नहीं करेंगे, तब तक वे किसी भी पलँग पर नहीं लेटेंगे। कइयों
ने सुन्दर घर बना डाले हैं, किन्तु साथ ही यह भी प्रण कर रखा है कि जब तक गुरू साहब
उन मकानों में चरण नहीं धरेंगे तब तक वे उन मकानों में नहीं रहेंगे। बहुत से लोगों
ने कीमती पोशाकें बनवा रखी हैं और यह निश्चय कर रखा है कि जब तक गुरूदेव जी उन्हें
नहीं पहनेंगे तब तक वे वस्त्र धारण नहीं करेंगे। किसी ने घोड़ा पाल रखा है तो किसी
ने पालकी सजा रखी है। इस प्रकार अनगिनत सिक्खों की श्रद्धा तथा प्रतिज्ञाएँ पूरी
करने के लिए गुरू जी नदी और मेघ की तरह जीवों पर कृपा वर्षा करते हुए सिक्खों का
उद्धार करने जा रहे हैं। वे सभी सिक्ख इस प्रकार गुरू चरणों में निवेदन करते आ रहे
हैं। हे भगवान ! आपने राजा अब्रीक की इच्छा पूरी की, वामन बनकर इन्द्र की सहायता
की, बलि राजा की बुद्धि फेर दी, द्रौपदी की लाज रखी, सुदामा की दरिद्रता दूर की,
विदुर का साग खाया, भीलनी के बेर चखे, कर्ण बाई की खिचड़ी का सेवन किया, धन्ने के
पशुओं को चराया। जिस समय भी किसी ने भी उन्हें अत्यन्त प्रेम से याद किया, वहीं आप
तुरन्त प्रकट हुए। अब हमारी बार क्यों देर कर रहे हो ? शीघ्र गुरू जी दर्शन दीजिए।