13. कुरूक्षेत्र का सूर्यग्रहण
श्री गुरू तेग बहादर साहब जी अपने प्रचार अभियान के दिनों में सूर्यग्रहण के मेले
के अवसर को ध्यान में रखकर कुरूक्षेत्र पहुँचे। उनका मानना था कि एकत्रित भीड़ को
बहुत सहज में गुरुमत सिद्धान्त समझाएँ जा सकते हैं। यही विधि श्री गुरू नानक देव जी
भी अपनाते थे जो कि बहुत सफल सिद्ध हुआ करती थी। गुरूदेव जी को कुछ पंडितों ने
ग्रहण के समय स्नान करने के लिए बाध्य किया। इस पर गुरूदेव जी ने उत्तर दिया कि
उन्होने शरीर की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अपना नियम बना रखा है, वे
प्रातःकाल नित्य स्नान करते हैं और आज भी किया है। रही बात पुण्य अथवा पाप की तो,
वे मानते ही नहीं। उनका मानना है कि शरीर के स्नान की अपेक्षा हृदय की मैल हरि नाम
रूपी जल से धोनी चाहिए, क्योंकि शुभ कर्मों ने ही साथ जाना है। आध्यात्मिक दुनियाँ
में तो शरीर गौण है:
साधो इहु तनु मिथिआ जानउ ।।
या भीतरि जो राम बसतु है सचो ताहि पछानो ।। रहाउ ।।
इहु जगु है संपति सपने की देखि कहा ऐडानो ।।
संगि तिहारै कछू न चालै ताहि कहा लपटानो ।।
उसतति निंदा दोऊ परहर हरि कीरति उरि आनो ।।
जन नानक सभ ही मै पूरन एक पुरख भगवानो ।।
गुरूदेव जी की वाणी समय के अनुकूल थी, सभी श्रोतागण इस नये
विचार से मँत्रमुग्ध हो गये।