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10. प्रचार दौरा

श्री गुरू तेग बहादुर साहब जी चक्क नानकी नामक नया नगर बसा रहे थे कि तभी कुछ मसँद (मिशनरी) बनारस व प्रयाग (इलाहाबाद) से आपके पास पहुँचे और प्रार्थना करने लगे कि हे गुरूदेव जी ! कृप्या आप पूर्व दिशा गँगा किनारे के नगरों में चरण डाले। वहाँ संगत आपके दर्शनों की अभिलाषा रखती है, बहुत लम्बे समय से वहाँ कोई गुरूजन प्रचार करने नहीं पहुँचे। इसके अतिरिक्त गुरूदेव जी को समाचार मिल रहे थे कि सम्राट औरँगजेब ने हिन्दू जनता का दमन करने के लिए कुछ कड़ी सम्प्रदाय नीतियों की घोषणा की है, जिससे जनसाधारण का जीना दूभर हो गया है और कई स्थानों से ऐसी घोषणाओं के विरोध में बगावत के स्वर सुनाई देने लगे हैं। ऐसे में आपने जनता में जागृति लाने के उद्देश्य से देश के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचार दौरा करने का मन बना लिया। उन दिनों आप चक्क नानकी नगर का निर्माण करवा रहे थे किन्तु आपने पहले राजनैतिक पीड़ितों की सहायता करने की ठानी, उनका मानना था कि यदि समय रहते जनता का मनोबल नहीं बढ़ाया गया तो दुष्ट, अत्याचारी शासक वर्ग करूरता पर उतर आयेगा। इससे पहले कि शासक वर्ग ऐसा करें जनसाधारण को सँगठित करके उनमें एकता का बल भर दिया जाये और वे मृत्यु का भय उतारकर आत्म बलिदान को एक आदर्श के रूप में चुनना प्रारम्भ कर दें। चक्क नानकी नगर का निर्माण कार्य भी आवश्यक था, वे नहीं चाहते थे कि इसमें कोई विघ्न उत्पन्न हो। अतः उन्होने अपने विश्वासपात्र परम सेवकों को यह कार्य सौंप दिया, जिनमें प्रमुख थे भाई भागू जी, भाई रामे जी, भाई साधू मुलतानी जी, बहिलो के क्षेत्र के मुखी भाई देशराज जी इत्यादि। आपने अपनी महल (सुपत्नी गुजरी कौर), माता श्री नानकी जी तथा साला कृपाल चँदजी को साथ चलने का आग्रह किया और पाँच सेवक साथ लेकर चल पड़े। सर्वप्रथम आपने श्री कीरतपुर साहिब जी के निकट घनोले गावँ पड़ाव किया। वहाँ कुछ दिन पहले ही बाढ़ के कारण किसानों के खेत क्षतिग्रस्त हो गये थे। आपने गरीब किसानों की पीड़ा को देखते हुए उनको आर्थिक सहायता दी और उनको साँत्वना देते हुए कहा– प्रभु जो करता है, अच्छा ही करता है। इसी में सबका भला होता है। चिन्ता करने की कोई बात नहीं। तद्पश्चात रोपड़ नगर होते हुए भालूवाल गाँव में रूके। वहाँ पर गाँव के एक किसान से आप जी ने कहा– प्यास लगी है, पानी ला दें, वह कहने लगा कि हजूर पास के कुओं का पानी खारा है, आप प्रतीक्षा करें मीठे कुएँ का जल मँगवा देता हूँ। गुरूदेव जी ने कहा कि कोई बात नहीं, इसी कुएँ का पानी पीने को दे दें। आज्ञा मानकर किसान ने ऐसा ही किया। गुरूदेव जी ने पानी पीकर कहा कि यह पानी भी मीठा ही है। बस फिर क्या था, उन कुओं का जल भी मीठा हो गया। इस प्रकार आप आगे बढ़ते हुए नौ लक्खा और टहलपुर होकर सैफ़ाबाद (बहादुरगढ़) आजकल के पटियाला पहुँचे। इस नगर को नवाब सैफखान ने बसाया था। सैफ़खान अपने समय का बड़ा प्रतिष्ठित व्यक्ति था। उसने मुगल दरबार में कई ऊँचे पदों पर काम किया था। औरँगजेब ने उसके भाई फिदाई खान को अपना धर्म-भाई बना रखा था। श्री गुरु तेग बहादुर साहब जी, सैफाबाद (बहादुरगढ़) के बाहर एक सुन्दर बाग में ठहरे थे, जसका तब नाम पँचवटी था। नवाब सैफखान अपने किले से आपको मिलने आया तथा आपसे प्रार्थना की कि हे गुरूदेव ! कृपया वे उसके घर चले, जिससे उसका परिवार भी उनके दर्शन कर सके। जैसे कि वे जानते ही हैं कि मुसलमानों में पर्दे का बहुत रिवाज है। इसलिए औरतें उनके दर्शनों को बाहर नहीं आ सकती। यदि वे उसके पास कुछ दिन ठहर जाएँ तो वे सुबह शाम उनका दर्शन कर लिया करेंगी। गुरूदेव ने उसके प्रेम भरे आग्रह को स्वीकार कर लिया और उन्हें एक नये सुन्दर भव्य महल में ठहराया गया। जिसके सामने एक आलीशान मस्जिद थी। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी, मस्जिद के चबूतरे पर बैठकर लोगों को प्रवचन सुनाते और उनकी आध्यात्मिक शँकाओं का समाधान प्रस्तुत करते। नवाब सैफखान की श्रद्धा से गुरु जी बड़े प्रसन्न थे। एक दिन सैफखान ने गुरूदेव जी से प्रश्न किया कि हे गुरूदेव ! उसे आगामी जीवन किस प्रकार से जीना चाहिए। इस पर गुरूदेव जी ने निम्न पद गाकर सभी को उस पर आचरण करने की सीख दी:

नर अचेत पाप ते डरु रे।
दीन दइआल सगल भै भंजन सरनि ताहि तुम परु रे।
बेद पुरान जास गुन गावत ता को नामु हीऐ मो धरु रे।
पावन नामु जगति मै हरि को सिमरि सिमरि कसमल सभ हरु रे।
मानस देह बहुरि नह पावै कछू उपाउ मुकति का करु रे।
नानक कहत गाहि करुना मै भव सागर कै पारि उतरु रे।

इस प्रकार कुछ दिन नवाब सैफखान के अतिथि रहकर गुरूदेव जी गाँव लहल में पहुँचे, जो कि वर्तमानकाल में नगर पटियाला में परिवर्तित हो गया है। उन दिनों वहाँ पर एक तालाब था। आप जी ने तालाब के किनारे बड़ के वृक्ष के नीचे अपना शिविर लगाया। जैसे ही गाँव के जनसाधारण को मालूम हुआ कि गुरू नानक देव जी के नौंवे उत्तराधिकारी श्री तेग बहादर आये हैं तो वहाँ दीनदुखियों की भीड़ एकत्रित हो गई। आपने सभी की समस्याएँ सुनी और सभी का समाधान किया। उसमें से एक माता ने अपने बच्चे को गुरूदेव के चरणों में लिटा दिया और कहा– हे गुरूदेव ! इसकी रक्षा करें, यह सूखता ही जाता है, इस गाँव में इसी रोग से पहले भी बहुत से बच्चे मृत्यु का ग्रास बन चुके हैं। इस रोग का कोई उपचार भी नहीं मिल पाया ? गुरूदेव ने माता जी की वेदना भरी गाथा सुनी और कहा कि इस बच्चे को प्रभु का नाम लेकर सामने वाले जलकुण्ठ (तालाब) में स्नान करवाओ। प्रभु कृपा से बालक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करेगा। उस माता ने आज्ञा मानकर ऐसा ही किया, बालक पूर्ण स्वस्थ हो गया। कालान्तर में यही स्थान दुखः निवारण नाम से प्रसिद्ध हुआ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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