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1. प्रकाश
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जन्मः 1621 ईस्वी
जन्म किस स्थान पर हुआः श्री अमृतसर साहिब जी
पिता का नामः छठवें गुरू श्री गुरू हरिगोबिन्द साहिब जी
माता का नामः नानकी जी
पत्नि का क्या नामः गुजरी जी
सन्तानः एक पुत्र
पुत्र का नामः दसवें गुरू साहिब श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी
श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी का पहला नामः त्यागमल
बहिन का नामः वीरो जी
आपके कितने भाई थेः 4
भाईयों के नामः गुरदिता, सुरजमल, अनी राय और अटल राय
जब 14 वर्ष के थे तब किस युद्ध में भाग लियाः करतारपुर के युद्ध में
तेग बहादर नाम कैसे पड़ाः करतारपुर के युद्ध में तेग से यानि तलवार से बहादुरी
दिखाने पर, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के द्वारा रखा गया।
ग्राम बकाले में सोढी परिवार के कितने सदस्य नकली गुरू बनकर बैठे थेः 22
किसने ग्राम बकाले में असली गुरू को खोजाः भाई मक्खन शाह लुभाणा ने
किस नगर का निमार्ण करवायाः श्री आनंदपुर साहिब जी
श्री आनंदपुर साहिब जी की आधारशिला कब रखीः 1661 ईस्वी
किस मुगल शासक ने हिन्दुओं पर अत्याचार करने की सब हदें पार कर दीः औरँगजेब ने
हिन्दुस्तान में कौनसा मुगल शासक था, जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि वह हिन्दुओं
का रोज सवा मन जनेऊ उतरवाकर, खाना खाता थाः औरंगजेब
कश्मीरी पण्डित गुरू जी के पास औरँगजेब द्वारा किये जा रहे अत्याचारों की गुहार
लेकर पहुँचे थे।
गुरू जी ने किसके लिए शहीदी दीः तिलक और जनेऊ की खातिर
गुरू जी के साथ शहीद होने वाले 3 सिक्ख थेः मती दास जी, सती दास जी और दयाला जी
भाई मती दास जी के शरीर को आरे से दो भागों में चीरकर शहीद किया गया था।
भाई सतीदास जी को रूईं में लपेटकर और जलाकर शहीद किया गया था।
भाई दयाला जी को गर्म पानी में उबालकर शहीद किया गया था।
गुरू जी के पवित्र सीस (सिर) को उनके पवित्र धड़ से अलग करके यानि तलवार से सीस
काटकर शहीद किया गया था।
गुरू जी की शहीदी कब हुईः 11 नबम्बर 1675
शहीदी किस स्थान पर हुईः चाँदनी चौक, दिल्ली।
शहीदी स्थान पर गुरूद्वारा साहिबः गुरूद्वारा श्री सीसगँज साहिब जी, चाँदनी चौक,
दिल्ली
गुरू जी के पवित्र धड़ का अंतिम सँस्कार किसने कियाः भाई लख्खी शाह वणजारा
अंतिम सँस्कार कैसे कियाः भाई लख्खी शाह वणजारा ने अपने घर को आग लगाकर।
अंतिम सँस्कार स्थानः गुरूद्वारा श्री रकाबगँज साहिब जी
श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के पवित्र शीश (सिर) साहिब जी को श्री आनंदपुर
साहिब जी लेकर भाई जैता जी पहुँचे।
जिस स्थान पर श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के पवित्र शीश (सिर) साहिब जी का
अन्तिम सँस्कार किया गया था, उसे गुरूद्वारा श्री सीसगँज साहिब जी, श्री
आनंदपुर साहिब जी कहते हैं।
16 अप्रैल सन् 1621 तदानुसार वैशाख शुक्ल पक्ष पँचमी संवत 1678
शुक्रवार का दिन था। श्री गुरू हरिगोविन्द जी प्रातःकाल ही श्री हरिमन्दिर साहिब
में नित्य-नियम अनुसार पधारे हुए थे कि तभी उन्हें शुभ समाचार दिया गया कि आपकी
पत्नि श्रीमती नानकी जी की गोद में एक सुन्दर व स्वस्थ बालक का प्रकाश हुआ है। उस
समय ‘आसा की वार’ का कीर्तन हो रहा था। इस सुखद सूचना को प्राप्त करते ही गुरू जी
उठे और प्रकाशमान आदि श्री गुरू ग्रँथ साहिब की पालकी के सम्मुख होकर प्रार्थना करने
लगे और फिर दँडवत् प्रणाम किया। कीर्तन की समाप्ति के पश्चात् वे सत्सँगियों,
श्रध्दालुओं के साथ अपने निवास स्थान ‘गुरू का हल’ वापिस पधारे। नवजात शिशु को देखते
ही गुरूदेव जी ने सिर झुका कर वन्दना की। इस पर निकटवर्त्तियों के आश्चर्य का ठिकाना
न रहा। और उन्होंने प्रश्न किया: वे बालक के प्रति नतमस्तक क्यों हुए हैं। उत्तर
में गुरूदेव जी ने कहा: कि ‘यह बालक दीनदुखियों की रक्षा करेगा और सभी प्राणियों के
सँकट हरेगा’। गुरू जी ने ऐसे पराक्रमी बालक का नाम त्यागमल रखा। उनका विचार था कि
यह बालक मानव कल्याण के लिए बहुत बड़ा त्याग करेगा जो कि इतिहास में स्वर्ण अक्षरों
में लिखा जाएगा। श्री त्यागमल (तेग बहादुर) जी से बड़े, चार भाई और एक बहन थी। भाइयों
के नाम क्रमशः गुरदित्ता जी (जन्म सन् 1613) सूरजमल जी (जन्म सन् 1617), अणीराय जी
(जन्म 1618) और अटल राय (जन्म सन् 1619) तथा बहन का नाम कुमारी वीरों जी (जन्म सन्
1615) था।
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