SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

9. देहावसान 

श्री गुरु हरिकिशन जी ने अनेकों रोगियों को रोग से मुक्त दिलवाई। आप बहुत ही कोमल व उद्वार हृदय के स्वामी थे। आप किसी को भी दुखी देख नहीं सकते थे और न ही किसी की आस्था अथवा श्रद्धा को टूटता हुआ देख सकते थे। असँख्य रोगी आपकी कृपा के पात्र बने और पूर्ण स्वास्थ्य लाभ उठाकर घरों को लौट गये। यह सब जब आपके भाई रामराय ने सुना तो वह कह उठा: श्री गुरू हरिकिशन पूर्व गुरूजनों के सिद्धाँतों के विरूद्व आचरण कर रहे हैं। पूर्व गुरूजन प्रकृति के कार्यों में हस्ताक्षेप नहीं करते थे और न ही सभी रोगियों को स्वास्थ्य लाभ देते थे। यदि वह किसी भक्तजन पर कृपा करते भी थे तो उन्हें अपने औषद्यालय की दवा देकर उसका उपचार करते थे। 1. एक बार हमारे दादा "श्री गुरदिता जी" ने आत्मबल से मृत गाय को जीवित कर दिया था तो हमारे पितामाह जी ने उन्हें बदले में शरीर त्यागने के लिए सँकेत किया था। 2. ठीक इसी प्रकार दादा जी के छोटे भाई श्री "अटल जी" ने साँप द्वारा काटने पर मृत मोहन को जीवित किया था तो पितामाह श्री हरिगोबिन्द जी ने उन्हें भी बदले में अपने प्राणों की आहुति देने को कहा था। 3. ऐसी ही एक घटना कुछ दिन पहले हमारे पिता "श्री हरिराय जी" के समय में भी हुई है, उनके दरबार में एक मृत बालक का शव लाया गया था, जिसके अभिभावक बहुत करूणामय रूदन कर रहे थे। कुछ लोग दयावश उस शव को जीवित करने का आग्रह कर रहे थे और बता रहे थे कि यदि यह बालक जीवित हो जाता है तो गुरू घर की महिमा खूब बढ़ेगी किन्तु पिता श्री ने केवल एक शर्त रखी थी कि जो गुरू घर की महिमा को बढ़ता हुआ देखना चाहता है तो वह व्यक्ति अपने प्राणों का बलिदान दे जिससे मृत बालक को बदले में जीवन दान दिया जा सके। उस समय भाई भगतू जी के छोटे सुपुत्र जीवन जी ने अपने प्राणों की आहुति दी थी और वह एकान्त में शरीर त्याग गये थे, जिसके बदले में उस मृत ब्राह्मण पुत्र को जीवनदान दिया गया था।

परन्तु अब श्री हरिकिशन बिना सोच विचार के आत्मबल का प्रयोग किये जा रहे हैं। जब यह बात श्री गुरू हरिकिशन जी के कानों तक पहुंची तो उन्होंने इस बात को बहुत गम्भीरता से लिया। उन्होंने स्वयँ चित्त में भी सभी घटनाओं पर क्रमवार एक दृष्टि डाली और प्रकृति के सिद्धान्तों का अनुसरण करने का मन बना लिया, जिसके अन्तर्गत आपने अपनी जीवन लीला रोगियों पर न्योछावर करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने का मन बना लिया। बस फिर क्या था ? आप अकस्मात् चेचक रोग से ग्रस्त दिखाई देने लगे। जल्दी ही आपके पूरे बदन पर फुँसियाँ दिखाई देने लगी और तेज़ बुखार होने लगा। (आपने सारा रोग अपने ऊपर ले लिया था।) सक्राँमक रोग होने के कारण आपको नगर के बाहर एक विशेष शिविर में रखा गया किन्तु रोग का प्रभाव तीव्र गति पर छा गया। आप अधिकाँश समय बे सुध पड़े रहने लगे। जब आपको चेतन अवस्था हुई तो कुछ प्रमुख सिक्खों ने आपका स्वास्थ्य जानने की इच्छा से आपसे बातचीत की तब आपने सन्देश दिया कि हम यह नश्वर शरीर त्यागने जा रहे हैं। तभी उन्होंने आपसे पूछा: आपके पश्चात् सिक्खसंगत की अगुवाई कौन करेगा ? इसके उत्तर में आपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति वाली परम्परा के अनुसार कुछ सामाग्री मँगवाई और उस सामग्री को थाल में सजाकर सेवक गुरूदेव के पास ले गये। आपने अपने हाथ में थाल लेकर पाँच बार घुमाया मानों किसी व्यक्ति की आरती उतारी जा रही हो और कहा बाबा बसे बकाले ग्राम यानि बाबा बकाले नगर में हैं।

इस प्रकार साँकेतिक सन्देश देकर आप ज्योति जोत समा गये। यह समाचार तुरन्त ही आग की तरह समस्त दिल्ली नगर में फैल गया और लोग गुरूदेव जी के पार्थिव शरीर के अन्तिम दर्शनों के लिए आने लगे। यह समाचार जब बादशाह औरँगजेब को मिला तो वह गुरूदेव जी के पार्थिव शरीर के दर्शनों के लिए आया। जब वह उस तम्बू में प्रवेश करने लगा तो उसका सिर बहुत बुरी तरह से चकराने लगा किन्तु वह बलपूर्वक शव के पास पहुँच ही गया, जैसे ही वह चादर उठाकर गुरूदेव जी का मुखमण्डल देखने को लपका तो उसे किसी अदृश्य शक्ति ने रोक लिया और विकराल रूप धरकर भयभीत कर दिया। सम्राट उसी क्षण चीखता हुआ लौट गया। यमुना नदी के तट पर ही आपकी चिता सजाई गई और अन्तिम विदाई देते हुए आपके नश्वर शरीर की अन्त्येष्टि क्रिया सम्पन्न कर दी गई। आप बाल आयु में ही ज्योति जोत समा गये थे। इसलिए इस स्थान का नाम बाला जी रखा गया। आपकी आयु निधन के समय 7 वर्ष 8 मास की थी। आपके शरीर त्यागने की तिथि 16 अप्रैल सन् 1664 तदानुसार वैशाख संवत 1721 थी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.