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8. दिल्ली में महामारी का आतँक 

श्री गुरू हरिकिशन जी के दिल्ली आगमन के दिनों में वहाँ हैजा रोग फैलता जा रहा था, नगर में मृत्यु का ताण्डव नृत्य हो रहा था, स्थान स्थान पर मानव शव दिखाई दे रहे थे। इस आतँक से बचने के लिए लोगों ने तुरन्त गुरू चरणों में शरण ली और गुहार लगाई कि हमें इन रोगों से मुक्ति दिलवाई जाये। गुरूदेव तो जैसे मानव कल्याण के लिए ही उत्पन्न हुए थे। उनका कोमल हृदय लोगों के करूणामय रूदन से द्रवित हो उठा। अतः उन्होंने सभी को साँत्वना दी और कहा– प्रभु भली करेंगे। आप सब उस सर्वशक्तिमान पर भरोसा रखें और मैंने जो प्रार्थना करके जल तैयार किया है, उसे पीओ, सभी का कष्ट निवारण हो जायेगा। सभी रोगियों ने श्रद्धापूर्वक गुरूदेव जी के कर-कमलों से जल ग्रहण कर, अमृत जान कर पी लिया और पूर्ण स्वस्थ हो गये। इस प्रकार रोगियों का गुरू दरबार में ताँता लगने लगा। यह देखकर गुरूदेव जी के निवास स्थान के निकट एक बाउड़ी तैयार की गई, जिसमें गुरूदेव जी द्वारा प्रभु भक्ति से तैयार जल डाल दिया जाता, जिसे लोग पीकर स्वास्थ्य लाभ उठाते। जैसे ही हैजे का प्रकोप समाप्त हुआ, चेचक रोग ने बच्चों को घेर लिया। इस सँक्रामक रोग ने भयँकर रूप धारण कर लिया। माताएँ अपने बच्चों को अपने नेत्र के सामने मृत्यु का ग्रास बनते हुए नहीं देख सकती थी। गुरू घर की महिमा ने सभी दिल्ली निवासियों को गुरूनानक देव जी के उत्तराधिकारी श्री हरिकिशन जी के दर पर खड़ा कर दिया। इस बार नगर के हर श्रेणी तथा प्रत्येक सम्प्रदाय के लोग थे। लोगों की श्रद्धा भक्ति रँग लाती, सभी को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ मिला। गुरू घर में प्रातःकाल से रोगियों का आगमन आरम्भ हो जाता, सेवादार सच्चे मन से चरणामृत रोगियों में वितरित कर देते, स्वाभाविक ही था कि लोगों के हृदय में श्री गुरू हरिकिशन जी के प्रति श्रद्वा बढ़ती चली गई। इस प्रकार बाल गुरू की स्तुति चारों ओर फैलने लगी और उन पर जनसाधारण की आस्था और भी सुदृढ़ हो गई।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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