1. जीवन वृत्तान्त श्री गुरू हरिकिशन
साहिब जी
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जन्मः 1656 ईस्वी
गुरू बने तब कितनी आयु थीः 5 वर्ष
किस सम्राट ने दिल्ली आने का निमँत्रण भेजा थाः औरंगजेब
अम्बाला शहर के निकट पँजोखरा नामक स्थान पर श्री गुरू हरिकिशन जी ने झींवर छज्जू
राम, जो गूँगा, बहरा और अनपढ़ था, उससे गीता के अर्थ करवाये।
दिल्ली में गुरू जी किस स्थान पर रूके थेः मिरजा राजा जयसिंह का बँगला
इस स्थान पर कौनसा गुरूद्वारा साहिब जी हैः गुरूद्वारा श्री बँगला साहिब जी
जोती जोत कब समायेः 1664 ईस्वी
जोती जोत समाते समय उम्रः 8 वर्ष
अन्तिम सँस्कार किस स्थान पर किया गयाः गुरूद्वारा श्री बाला साहिब जी
जोती जोत समाने से पूर्व आखिरी शब्द क्या बोला थाः बाबा बसे ग्राम बकाले
श्री गुरू हरि किशन साहब जी का प्रकाश श्री गुरू हरिराय जी के
गृह माता किशन कौर की कोख से संवत 1713 सावन माह शुक्ल पक्ष 8 कोतदानुसार 23 जुलाई
1656 को कीरतपुर, पँजाब में हुआ। आप हरिराय जी के छोटे पुत्र थे। आपके बड़े भाई
रामराय आप से 10 वर्ष बड़े थे। श्री हरिकिशन जी का बाल्यकाल अत्यन्त लाड़ प्यार से
व्यतीत हुआ। परिवारजन तथा अन्य निकटवर्ती लोगों को बाल हरिकिशन जी के भोले भाले मुख
मण्डल पर एक अलौकिक आभा छाई दिखाई देती थी, नेत्रों में करूणा के भाव दृष्टिगोचर
होते थे। छोटे से व्यक्तित्त्व में गजब का ओज रहता था। उनका दर्शन करने मात्र से एक
आत्मिक सुख सा मिलता था। गुरू हरिराय अपने इस नन्हें से बेटे की ओर दृष्टि डालते तो
उन्हें प्रतीत होता था कि जैसे प्रभु स्वयँ मानव रूप धारण करके किसी महान उद्देश्य
की पूर्ति के लिए इस घर में पधारे हों। भाव श्री हरिकिशन में उन्हें ईश्वरीयपूर्ण
प्रतिबिम्ब नजर आता। वह हरिकिशन के रूप में ऐसा पुत्र पाकर परम सन्तुष्ट थे। गुरू
हरिराय जी ने दिव्य दृष्टि से अनुभव किया कि शिशु हरिकिशन की कीर्ति भविष्य में
विश्व भर में फैलेगी। अतः इस बालक का नाम लोग आदर और श्रृद्वा से लिया करेंगे। शिशु
का भविष्य उज्ज्वल है यह उन्हें दृष्टिमान हो रहा था और उनका विश्वास फलीभूत हुआ।
श्री हरिकिशन जी ने गुरू पद की प्राप्ति के पश्चात् अपना नाम इतिहास में स्वर्ण
अक्षरों में अंकित करवा दिया।