9. भाई अनक सिंघ परमार
भाई अनक सिंघ परमार भी 22 दिसम्बर 1705 के दिन चमकौर की गढ़ी में
शहीद हुए थे। भाई अनक सिंघ परमार का जन्म 7 मार्च 1668 के दिन भाई मनी सिंघ जी के
घर गाँव अलीपुर जिला मुजफ्फरगढ़ में हुआ था। आपके दादा भाई माईदास जी, पड़दादा शहीद
भाई बल्लू परमार और नाना भाई लख्खी शाह वणजारे के परिवार सिक्ख पँथ के साथ श्री गुरू
अरजन देव साहिब जी के समय से ही जुड़े हुए थे। इस परिवार ने गुरू साहिब जी की कई
लड़ाईयों में शहीदियाँ हासिल कीं। भाई अनक सिंघ जी भाई मनी सिंघ जी के चौथे बेटे थे।
भाई अनक सिंघ और उसके चार भाईयों को भाई मनी सिंघ जी ने गुरू साहिब जी को अर्पित कर
दिया था। यह पाँचों ही गुरू घर की बहुत सेवा करते थे और श्री आनँदपुर साहिब जी में
ही रहते थे। जब गुरू साहिब जी ने खालसा पँथ की स्थापना की तो पाँच प्यारों और पाँच
मुक्तों के बाद पहले बैच में आपने अमृतपान किया था और अनकदास से भाई अनक सिंघ बन गए
थे। भाई अनक सिंघ परमार ने गुरू साहिब जी की सारी लड़ाईयों में हिस्सा लिया था। 20
दिसम्बर 1705 को जब गुरू साहिब जी ने श्री आनँदपुर साहिब जी छोड़ने का निर्णय लिया
तो गुरू साहिब जी के साथ जीने-मरने की कसम खानें वाले 39 अन्य सिक्खों के साथ आप भी
थे। इन 40 सिक्खों को श्री आनंदपुर साहिब जी के 40 मुक्ते कहकर सम्बोधित किया जाता
है। गुरू साहिब जी के साथ यह कोटला निहँग से होते हुए श्री चमकौर साहिब जी पहुँचे।
सारे के सारे सिक्ख थके हुए थे। सभी ने बुधीचँद रावत की गढ़ी में डेरा डाल लिया।
दूसरी ओर किसी चमकौर निवासी ने यह जानकारी रोपड़ जाकर वहाँ के थानेदार को दे दी। इस
प्रकार मुगल फौजें चमकौर की गढ़ी में पहुँच गईं। मुगलों की गिनती लगभग 10 लाख के
आसपास थी। कुछ ही देर में जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई। सिक्ख पाँच-पाँच का जत्था लेकर
गढ़ी में से निकलते और लाखों हमलावरों के जूझते। भाई अनक सिंघ जी शुरू-शुरू में
निकलकर लड़ाई करने वाले सिंघों में से एक थे। आपने बाहर निकलकर कई घण्टों तक लड़ाई
की, खूब लड़ाई की और तुरक फौजों को अली-अली कहने पर मजबूर किया। हमलावरों को मौत के
घाट उतारने के बाद आप भी शहीद हो गए।