7. भाई मदन सिंघ जी और भाई काठा सिंघ
जी
22 दिसम्बर 1705 के दिन चमकौर की गढ़ी में शहीद होने वालों में
से भाई मदन सिंघ जी और भाई काठा सिंघ जी सबसे पहले सिंघ थे। भाई मदन सिंघ जी और भाई
काठा सिंघ जी गुरू साहिब जी के घोड़ों के अस्तबल के इन्चार्ज थे। जब गुरू साहिब जी
ने 20 दिसम्बर की रात को श्री आनँदपुर साहिब जी का त्याग किया तो गुरू जी के साथ
जीने मरने वाले 40 मुक्तों में आप जी भी शामिल हुए। गुरू साहिब जी के साथ यह कोटला
निहँग से होते हुए श्री चमकौर साहिब जी पहुँचे। सारे के सारे सिक्ख थके हुए थे। सभी
ने बुधीचँद रावत की गढ़ी में डेरा डाल लिया। दूसरी ओर किसी चमकौर निवासी ने यह
जानकारी रोपड़ जाकर वहाँ के थानेदार को दे दी। इस प्रकार मुगल फौजें चमकौर की गढ़ी
में पहुँच गईं। मुगलों की गिनती लगभग 10 लाख के आसपास थी। 22 दिसम्बर सन 1705 को
सँसार का अनोखा युद्ध प्रारम्भ हो गया। आकाश में घनघोर बादल थे और धीमी-धीमी
बूँदाबाँदी हो रही थी। वर्ष का सबसे छोटा दिन होने के कारण सूर्य भी बहुत देर से
उदय हुआ था, कड़ाके की शीत लहर चल रही थी किन्तु गर्मजोशी थी तो कच्ची हवेली में
आश्रय लिए बैठे गुरूदेव जी के योद्धाओं के हृदय में। कच्ची गढ़ी पर आक्रमण हुआ। भीतर
से तीरों और गोलियों की बौछार हुई। अनेक मुग़ल सैनिक हताहत हुए। दोबारा सशक्त धावे
का भी यही हाल हुआ। मुग़ल सेनापतियों को अविश्वास होने लगा था कि कोई चालीस सैनिकों
की सहायता से इतना सबल भी बन सकता है। सिक्ख सैनिक लाखों की सेना में घिरे निर्भय
भाव से लड़ने-मरने का खेल, खेल रहे थे। गढ़ी के दरवाजे की रक्षा के लिए भाई मदर सिंघ
जी और भाई काठा सिंघ जी को तैनात किया गया। तभी मुग़ल जरनैल नाहर ख़ान ने सीढ़ी लगाकर
गढ़ी पर चढ़ने का प्रयास किया किन्तु गुरूदेव जी ने उसको वहीं बाण से भेद कर चित्त कर
दिया। एक और जरनैल ख्वाजा महमूद अली ने जब साथियों को मरते हुए देखा तो वह दीवार की
ओट में भाग गया। गुरूदेव जी ने उसकी इस बुजदिली के कारण उसे अपनी रचना में मरदूद
करके लिखा है। मुगल फौज पीछे हट गई किन्तु उनमें से एक पठान गढ़ी के दरवाजे तक
पहुँचने में सफल हो गया। भाई मदन सिंघ जी और भाई काठा सिंघ जी ने उस पठान पर कई वार
किए परन्तु वह पठान कोई माना हुआ वीर योद्धा था। उसने भाई मदन सिंघ जी और भाई काठा
सिंघ जी पर भी कई वार किए और इस लड़ाई में वह पठान मारा गया परन्तु भाई मदन सिंघ जी
और भाई काठा सिंघ जी भी शहीद हो गए। यह दोनों चमकौर की गढ़ी के पहले शहीद थे।