37. भाई संत सिंघ बंगेशरी
भाई संत सिंघ बंगेशरी जी ने 23 दिसम्बर 1705 वाले दिन सुबह के
समय मुगल फौजों का सामना करते हुए शहीदी जाम पीया था। वो चमकौर की गढ़ी में शहीद होने
वाले आखरी सिक्खों में से एक थे। भाई संत सिंघ बंगेशरी जी भाई ठठीआ के पुत्र और
शहीद भाई बल्लू जी के पोते थे। वह हमेशा गुरू साहिब जी के साथ ही रहते थे। उनको अपनी
जिन्दगी के आखिरी कई दिन गुरू साहिब जी के पास गुजारने का मौका मिला था। खालसा
प्रकट होने से लेकर चमकौर साहिब जी की लड़ाई तक वह गुरू साहिब जी के साथ रहे और
सिक्ख पँथ के लिए अंत में शहीदी जाम पीया और इतिहास में अमर हो गए। कुछ लेखकों ने
भाई संत सिंघ बंगेशरी के स्थान पर उनका नाम भाई संगत सिंघ बंगेशरी लिख दिया है। जबकि
संगत सिंघ बंगेशरी तो 24 जून 1734 के दिन भाई मनी सिंघ जी के साथ लाहौर में शहीद
हुए थे। श्री आनँदपुर साहिब जी में रहते हुए सिक्खों को बिलासपुर के राजा अजमेरचँद
के साथ कई बार दो-दो हाथ करने पड़े थे। मई 1705 में पहाड़ी और मुगल सेनाओं ने पुरी
तरह से चारों ओर से घेर लिया तो यह घेरा लगभग 7 महीने तक रहा। 20 दिसम्बर 1705 को
जब गुरू साहिब जी ने श्री आनँदपुर साहिब जी छोड़ने का निर्णय लिया तो गुरू साहिब जी
के साथ जीने-मरने की कसम खानें वाले 39 ओर सिक्खों के साथ आप भी थे। इन 40 सिक्खों
को श्री आनँदपुर साहिब जी के 40 मुक्ते कहकर सम्बोधित किया जाता है। गुरू साहिब जी
के साथ यह कोटला निहँग से होते हुए श्री चमकौर साहिब जी पहुँचे। सारे के सारे सिक्ख
थके हुए थे। सभी ने बुधीचँद रावत की गढ़ी में डेरा डाल लिया। दूसरी ओर किसी चमकौर
निवासी ने यह जानकारी रोपड़ जाकर वहाँ के थानेदार को दे दी। इस प्रकार मुगल फौजें
चमकौर की गढ़ी में पहुँच गईं। सँसार का सबसे अनोखा युद्ध आरम्भ हो गया। जबकि मुगलों
की गिनती लगभग 10 लाख के आसपास थी। कुछ ही देर में जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई। सिक्खों
ने गुरिल्ला लड़ाई का सहारा लिया। सिक्ख पाँच-पाँच का जत्था लेकर गढ़ी में से निकलते
और लाखों हमलावरों के जूझते और तब तक जूझते रहते जब तक कि शहीद नहीं हो जाते। शाम
तक बहुत से सिक्ख शहीद हो चुके थे। साहिबजादा अजीत सिंघ जी और साहिबजादा जुझार सिंघ
जी भी शहीदी पा गए थे। रात होने तक 35 सिक्ख शहीद हो चुके थे।
अगले दिन सूर्य उदय होते ही बाकी के सिक्ख भी शहीद हो गए, जिसमें
भाई संत सिंघ बंगेशरी जी भी शामिल थे। इन शहीदों का अन्तिम सँस्कार इसी स्थान पर 25
दिसम्बर 1705 वाले दिन किया गया।