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33. भाई गुरबखशीश सिंघ जी

  • नामः भाई गुरबखशीश सिंघ जी
    पहला नामः गुरबखशीश राए
    अमृतपान करने के बाद नामः भाई गुरबखशीश सिंघ जी
    अमृतपान कब कियाः पाँच प्यारों के बाद तीसरे बैच में
    कब शहीद हुएः 22 दिसम्बर 1705
    कहाँ शहीद हुएः चमकौर की गढ़ी
    किसके खिलाफ लड़ेः मुगलों के
    अन्तिम सँस्कार का स्थानः चमकौर की गढ़ी
    अन्तिम सँस्कार कब हुआः 25 दिसम्बर 1705

भाई गुरबखशीश सिंघ जी भी उन 40 सिंघों में से एक थे जो श्री चमकौर की गढ़ी से बाहर आकर 22 दिसम्बर 1705 के दिन शहीदी प्राप्त कर गए थे। आप श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी के साथ श्री आनँदपुर साहिब जी में ही रहते थे। आप गुरू साहिब जी के दरबारी सिक्खों में से एक थे। आप गुरू जी के दरबार में रहकर गुरू घर की सेवा किया करते थे। भाई गुरबखशीश सिंघ जी का पहला नाम भाई गुरबखशीश राए जी था जो कि अमृतपान करने के बाद भाई गुरबखशीश सिंघ जी हो गया। आपने पाँच प्यारों के बाद तीसरे बैच में अमृतपान किया था। आपके साथ अमृतपान करने वाले अन्य सिंघ थेः भाई किरमा सिंघ दत्त, भाई दया सिंघ पुराहित, भाई नानूं सिंघ दिलवाली, सोढी दीप सिंघ और नँद सिंघ, कवि बचन सिंघ, अणी सिंघ और सरहिंद वाले तीन बनिए भाई (भाई हजारी सिंघ, भाई भंडारी सिंघ और भाई दरबारी सिंघ)। भाई गुरबखशीश सिंघ जी का गुरू घर और गुरू साहिब जी के साथ बहुत स्नेह था। आप अक्सर गुरू साहिब के पास ही रहा करते थे। जब अजमेरचँद ने श्री आनँदपुर साहिब जी और निरमोहगढ़ पर हमला किया तो आपने ओर सिक्खों के साथ मिलकर हमलावरों को खूब सबक सिखाया। श्री आनँदपुर साहिब जी में रहते हुए सिक्खों को बिलासपुर के राजा अजमेरचँद के साथ कई बार दो-दो हाथ करने पड़े थे। मई 1705 में पहाड़ी और मुगल सेनाओं ने पुरी तरह से चारों ओर से घेर लिया तो यह घेरा लगभग 7 महीने तक रहा। 20 दिसम्बर 1705 को जब गुरू साहिब जी ने श्री आनँदपुर साहिब जी छोड़ने का निर्णय लिया तो गुरू साहिब जी के साथ जीने-मरने की कसम खानें वाले 39 ओर सिक्खों के साथ आप भी थे। इन 40 सिक्खों को श्री आनँदपुर साहिब जी के 40 मुक्ते कहकर सम्बोधित किया जाता है। गुरू साहिब जी के साथ यह कोटला निहँग से होते हुए श्री चमकौर साहिब जी पहुँचे। सारे के सारे सिक्ख थके हुए थे। सभी ने बुधीचँद रावत की गढ़ी में डेरा डाल लिया। दूसरी ओर किसी चमकौर निवासी ने यह जानकारी रोपड़ जाकर वहाँ के थानेदार को दे दी। इस प्रकार मुगल फौजें चमकौर की गढ़ी में पहुँच गईं। सँसार का सबसे अनोखा युद्ध आरम्भ हो गया। जबकि मुगलों की गिनती लगभग 10 लाख के आसपास थी। कुछ ही देर में जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई। सिक्खों ने गुरिल्ला लड़ाई का सहारा लिया। सिक्ख पाँच-पाँच का जत्था लेकर गढ़ी में से निकलते और लाखों हमलावरों के जूझते और तब तक जूझते रहते जब तक कि शहीद नहीं हो जाते। शाम तक बहुत से सिक्ख शहीद हो चुके थे। साहिबजादा अजीत सिंघ जी और साहिबजादा जुझार सिंघ जी भी शहीदी पा गए थे। रात होने तक 35 सिक्ख शहीद हो चुके थे। इनमें भाई गुरबखशीश सिंघ जी भी शामिल थे। इन शहीदों का अन्तिम सँस्कार इसी स्थान पर 25 दिसम्बर 1705 वाले दिन किया गया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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