3. भाई उदै (उदय) सिंघ जी
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नामः भाई उदै (उदय) सिंघ जी
पुराना नामः उदय राम जी
अमृतपान करने के बाद नामः भाई उदै सिंघ जी
जन्मः 27 अक्टूबर 1665
जन्म स्थानः गाँव अलीपुर, जिला मुजफ्फरगढ़
आपके पुत्रः 7 पुत्र (जिसमें से 5 पुत्र पँथ के लिए शहीद हुए)
पिता का नामः भाई मनी सिंघ जी
दादा का नामः भाई माईदास जी
पड़दादा का नामः भाई बल्लू जी
किस खानदान से संबंधः परमार-राजपूत खानदान
भट वहियों की एन्टरी के अनुसार भाई उदै (उदय) सिंघ जी लगभग लगातार 5 घण्टे (लगभग
288 मिनिट तक) लड़ते रहे।
भाई उदै (उदय) सिंघ जी और उनका बड़ा भाई, भाई बचितर सिंघ खालसा फौज के सबसे बड़े
हीरो थे।
भाई उदै (उदय) सिंघ जी खालसा फौज का शायद पहला जत्थेदार था। जत्थेदार होने के
बारे में कई सोमों में इनका जिक्र भी मिलता है।
भाई उदै सिंघ और उनके चार भाईयों को श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी ने
हुकुमनामा 2 अक्टूबर को बख्शकर निवाजा था। इस हुकुमनामें में गुरू साहिब जी ने
लिखा था कि यह पाँचों मेरे पुत्र हैं।
कब शहीद हुएः 21 दिसम्बर 1705
कहाँ शहीद हुएः शाही टिब्बी (सरसा नदी के किनारे)
किसके खिलाफ लड़ेः पहाड़ी और मुगल फौज
भाई उदै (उदय) सिंघ जी 21 दिसम्बर 1705 के दिन दोपहर के समय शाही
टिब्बी (सरसा नदी के किनारे) पर शहीद हुए थे। भाई उदै (उदय) सिंघ जी भाई मनी सिंघ
जी के बेटे, भाई माईदास जी के पोते और भाई बल्लू जी के पड़पोते थे। आप परमार-राजपूत
खानदान से संबंध रखते थे। आपका जन्म 27 अक्टूबर 1665 के दिन गाँव अलीपुर, जिला
मुजफ्फरगढ़ में हुआ था। भाई मनी सिंघ जी ने जिन पाँच पुत्रों को श्री गुरू गोबिन्द
सिंघ साहिब जी को अर्पित किया था, उसमें से एक भाई उदै (उदय) सिंघ जी भी थे। आप भाई
मनी सिंघ जी के 10 पुत्रों में से तीसरे नम्बर के थे। आप अपनी उम्र के कई साल श्री
आनंदपुर साहिब जी में ही रहे थे। एक मौके मुताबिक भाई उदै सिंघ जी का विवाह 2 मार्च
1693 के दिन श्री आनंदपुर साहिब जी में ही हुआ था। आपके घर 7 पुत्रों ने जन्म लियाः
1. भाई महिबूब सिंघ जी
2. भाई अजूब सिंघ जी
3. भाई फतिह सिंघ जी
4. भाई अलबेल सिघ जी
5. भाई मोहर सिंघ जी
6. भाई बाघ सिंघ जी और
7. भाई अनोख सिंघ जी
इन 7 पुत्रों में से 5 ने सिक्ख पँथ की लड़ाईयों में शहीदियाँ
हासिल कीं। भाई महिबूब सिंघ और भाई फतिह सिंघ जी ने 13 मई 1710 के दिन चपड़-चिड़ी (सरहिंद)
में शहीदी पाई, बाघ सिंघ 28 दिसम्बर 1711 के दिन बिलासपुर में शहीद हुए और भाई
अलबेल सिंघ और भाई मोहर सिंघ 22 जून 1713 के दिन सढौरा में शहीद हुए थे। जब श्री
गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी ने खालसा प्रकट किया तो भाई उदै सिंघ जी ने पाँच प्यारों
और पाँच मुक्तों के बाद पहले बैच में अमृतपान किया था और उदै राम से भाई उदै सिंघ
बन गए। भाई उदै (उदय) सिंघ जी शिकार करने में भी बहुत महारत रखते थे। एक बार
उन्होंने तलवार से एक शेर का शिकार भी किया था। यह घटना 9 मार्च 1696 की है। भाई उदै
(उदय) सिंघ जी बहुत ही बहादुर और तलवार के धनी थे। तीर चलाने में कोई भी उनका सानी
नहीं था। 29 अगस्त में जब पहाड़ी फौजों ने किला तारागढ़ पर हमला किया तो गुरू साहिब
जी ने भाई उदै (उदय) सिंघ जी को आगू बनाकर सवा सौ सिंघों का जत्था देकर भेजा। इस
लड़ाई में बहुत सारे पहाड़ी मारे गए और भाग गए। पहली सितम्बर को पहाड़ी फौजों ने किला
लोहगढ़ पर हमला कर दिया। इन फौजों की अगुवाई करने वाला राजा केसरीचँद जसवालिया भी
था। उसका मुकाबला भाई उदै (उदय) सिंघ जी से आमने-सामने हुआ। भाई उदै (उदय) सिंघ जी
ने तलवार के एक ही वार से केसरीचँद का सिर उतार दिया और बरछे पर टाँगकर श्री गुरू
गोबिन्द सिंघ साहिब जी के चरणों में जाकर भेंट किया। इसी प्रकार 15 मार्च 1701 के
दिन भाई उदै (उदय) सिंघ जी की अगुवाई में सिक्ख फौजों ने बजरूड़ गाँव के जालिम गुजरों
और रँघड़ों को ठीक किया था। मार्च 1703 में बसीकलां पर हमला करके द्वारकादास नाम के
ब्राहम्ण की पत्नी को जबरजँग खाँ की कैद से छुड़वाने के लिए गए जत्थें में भाई उदै (उदय)
सिंघ जी भी शामिल थे। 20 दिसम्बर की रात को जब गुरू साहिब जी ने श्री आनंदपुर साहिब
जी छोड़ा तो भाई उदै (उदय) सिंघ जी भी इसमें शामिल थे। पाँच सौ सिक्खों का यह काफिला
श्री आनंदुपर साहिब जी से कीरतपुर तक चुपचाप निकल गया। पर जब निरमोहगढ़ निकलते समय
झख्खीआँ गाँव की जूह में, शाही टिब्बी के पास, सरसा नदी पार करने के लिए वहाँ पर
पहुँचा तो पीछे से पहाड़ी फौजों और मुगलों की फौजों ने जबरदस्त हमला कर दिया। गुरू
साहिब जी ने भाई उदै (उदय) सिंघ जी को शाही टिब्बी पर मोर्चा सम्भालने के लिए तैनात
कर दिया। भाई उदै (उदय) सिंघ जी के साथ 50 सिक्ख और भी थे। इन 51 सिंघों ने पहले तो
तीरों से दुशमन का स्वागत किया और फिर तलवारों से हुई हाथों-हाथ लड़ाई में डटकर
मुकाबला किया और अंत में शहीदी हासिल की। इस मौके पर हजारों पहाड़ी हमलावर मारे गए
और यह 51 के 51 सिंघ भी शहीद हो गए। इस मौके पर भाई उदै (उदय) सिंघ जी ने श्री गुरू
गोबिन्द साहिब जी के कपड़े पहने हुए थे। पहाड़ियों ने उनको गुरू साहिब जी समझ लिया और
भाई उदै (उदय) सिंघ जी का सिर कटवाकर रोपड़ के नवाब को भेज दिया। पर जब उन्हें पता
लगा कि वो गुरू साहिब जी नहीं थे, वो तो भाई उदै (उदय) सिंघ जी थे, तो उन्होंने गुरू
साहिब जी की खोजबीन शुरू कर दी।