SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

29. भाई लाल सिंघ जी

  • नामः भाई लाल सिंघ जी
    पुराना नामः लालचँद
    अमृतपान करने के बाद नामः भाई लाल सिंघ जी
    अमृतपान कब कियाः भाई मनी सिंघ जी वाले बैच के बाद (1999 बैसाखी वाले दिन)
    कौन से युद्ध लड़ेः भँगाणी और श्री आनँदपुर साहिब जी के सभी युद्ध
    कब शहीद हुएः 22 दिसम्बर 1705
    कहाँ शहीद हुएः चमकौर की गढ़ी
    किसके खिलाफ लड़ेः मुगलों के खिलाफ
    अन्तिम सँस्कार का स्थानः चमकौर की गढ़ी
    अन्तिम सँस्कार कब हुआः 25 दिसम्बर 1705

भाई लाल सिंघ जी भी उन 40 सिक्खों में शामिल हैं जिन्होंने चमकौर की गढ़ी से बाहर निकलकर 22 दिसम्बर 1705 में मुगल हमलावरों के साथ लड़ते हुए शहादत हासिल की। यह शहीदी अन्धेरा होने से पहले हुई थी। आपने भी अमृतपान किया था और सिंघ सजे थे। आपने 5 प्यारों, पाँच मुक्तों और भाई मनी सिंघ वाले बैच के 11 सिक्खों के बाद अमृतपान किया था। आपका पुराना नाम लालचँद था जो कि अमृतपान करने के बाद लाल सिंघ हो गया। आप श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी के साथ बहुत स्नेह रखते थे और हमेशा ही उनके साथ रहना चाहते थे। आप पेशावर के रहने वाले थे। इसलिए आपको लालचँद पशोरिया कहा जाता था। एक मौके मुताबिक आप गुरू साहिब जी के खजानची थे। भाई लाल सिंघ जी गुरू साहिब जी के पास कई समय से रह रहे थे। आप श्री आनँदपुर साहिब जी में गुरू साहिब जी के साथ ही थे। इसके बाद जब गुरू जी ने श्री पाउँटा साहिब नगर बसाया तो आप भी गुरू जी के साथ ही वहाँ चले गए। आपने भँगाणी की लड़ाई जो कि 1687 में लड़ी गई थी, उसमें बहुत बहादुरी के जौहर दिखाए थे। इनके बारे में बचितर नाटक में इस प्रकार जिक्र से आता हैः

हठियो माहरी चंदयं गंगरामं ।।
जिनै कितयं जितियं फौज तामं ।।
कुपे लाल चंदं कीऐ लाल रूपं ।।
जिनै गजीयं गरब सिंघं अनूपं ।।5।।

20 दिसम्बर 1705 को जब गुरू साहिब जी ने श्री आनँदपुर साहिब जी छोड़ने का निर्णय लिया तो गुरू साहिब जी के साथ जीने-मरने की कसम खानें वाले 39 ओर सिक्खों के साथ आप भी थे। इन 40 सिक्खों को श्री आनँदपुर साहिब जी के 40 मुक्ते कहकर सम्बोधित किया जाता है। गुरू साहिब जी के साथ यह कोटला निहँग से होते हुए श्री चमकौर साहिब जी पहुँचे। सारे के सारे सिक्ख थके हुए थे। सभी ने बुधीचँद रावत की गढ़ी में डेरा डाल लिया। दूसरी ओर किसी चमकौर निवासी ने यह जानकारी रोपड़ जाकर वहाँ के थानेदार को दे दी। इस प्रकार मुगल फौजें चमकौर की गढ़ी में पहुँच गईं। सँसार का सबसे अनोखा युद्ध आरम्भ हो गया। जबकि मुगलों की गिनती लगभग 10 लाख के आसपास थी। कुछ ही देर में जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई। सिक्खों ने गुरिल्ला लड़ाई का सहारा लिया। सिक्ख पाँच-पाँच का जत्था लेकर गढ़ी में से निकलते और लाखों हमलावरों के जूझते और तब तक जूझते रहते जब तक कि शहीद नहीं हो जाते। शाम तक बहुत से सिक्ख शहीद हो चुके थे। साहिबजादा अजीत सिंघ जी और साहिबजादा जुझार सिंघ जी भी शहीदी पा गए थे। रात होने तक 35 सिक्ख शहीद हो चुके थे। इनमें भाई लाल सिंघ जी भी शामिल थे। इन शहीदों का अन्तिम सँस्कार इसी स्थान पर 25 दिसम्बर 1705 वाले दिन किया गया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.