26. भाई शाम सिंघ जी
भाई शाम सिंघ जी भी उन 40 सिक्खों में शामिल हैं जिन्होंने
चमकौर की गढ़ी से बाहर निकलकर मुगल हमलावरों के साथ लड़ते हुए शहादत का जाम पीया। आप
श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी की फौज और दरबार के एक खास सिक्ख थे। 20 दिसम्बर
1705 को जब गुरू साहिब जी ने श्री आनँदपुर साहिब जी छोड़ने का निर्णय लिया तो गुरू
साहिब जी के साथ जीने-मरने की कसम खानें वाले 39 ओर सिक्खों के साथ आप भी थे। इन 40
सिक्खों को श्री आनँदपुर साहिब जी के 40 मुक्ते कहकर सम्बोधित किया जाता है। गुरू
साहिब जी के साथ यह कोटला निहँग से होते हुए श्री चमकौर साहिब जी पहुँचे। सारे के
सारे सिक्ख थके हुए थे। सभी ने बुधीचँद रावत की गढ़ी में डेरा डाल लिया। दूसरी ओर
किसी चमकौर निवासी ने यह जानकारी रोपड़ जाकर वहाँ के थानेदार को दे दी। इस प्रकार
मुगल फौजें चमकौर की गढ़ी में पहुँच गईं। सँसार का सबसे अनोखा युद्ध आरम्भ हो गया।
जबकि मुगलों की गिनती लगभग 10 लाख के आसपास थी। कुछ ही देर में जबरदस्त लड़ाई शुरू
हो गई। सिक्खों ने गुरिल्ला लड़ाई का सहारा लिया। सिक्ख पाँच-पाँच का जत्था लेकर गढ़ी
में से निकलते और लाखों हमलावरों के जूझते और तब तक जूझते रहते जब तक कि शहीद नहीं
हो जाते। शाम तक बहुत से सिक्ख शहीद हो चुके थे। साहिबजादा अजीत सिंघ जी और
साहिबजादा जुझार सिंघ जी भी शहीदी पा गए थे। रात होने तक 35 सिक्ख शहीद हो चुके थे।
इनमें भाई शाम सिंघ जी भी शामिल थे। इन शहीदों का अन्तिम सँस्कार इसी स्थान पर 25
दिसम्बर 1705 वाले दिन किया गया।