SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

22. भाई ईशर सिंघ मुक्ता

  • नामः भाई ईशर सिंघ मुक्ता
    पुराना नामः ईशरदास
    अमृतपान करने के बाद नामः भाई ईशर सिंघ जी
    5 मुक्तों में से चौथे नम्बर के मुक्ते
    आप सिक्ख इतिहास में अमृतपान करने वाले 10 वें नम्बर के सिंघ हैं
    कब शहीद हुएः 22 दिसम्बर 1705
    कहाँ शहीद हुएः चमकौर की गढ़ी
    किसके खिलाफ लड़ेः मुगलों के खिलाफ
    अन्तिम सँस्कार का स्थानः चमकौर की गढ़ी
    अन्तिम सँस्कार कब हुआः 25 दिसम्बर 1705

महत्वपूर्ण नोटः कई इतिहासकार यह लिखते हैं कि 5 प्यारों के बाद 5 मुक्तों ने अमृतपान किया था, लेकिन सही बात तो यह है कि 5 प्यारों के बाद श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी ने अमृतपान किया था। इसलिए यहाँ पर हमने चौथे मुक्ते को अमृतपान करने के मामले में 10 वां नम्बर दिया है।

भाई ईशर सिंघ मुक्ता ने भी 22 दिसम्बर 1705 के दिन चमकौर की गढ़ी में शहीदी हासिल की थी। आप भी श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी के प्रॅमुख सिक्खों में से एक थे। आपके बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है पर इतना जरूर पता चलता है कि भाई ईशर सिंघ मुक्ता उन पाँच मुक्तों में शामिल हैं, जो पाँच प्यारों के बाद गुरू साहिब जी को अपना सीस देने के लिए उठे थे। यह पाँच प्यारों के बाद अमृतपान करने वाले चौथे नम्बर के मुक्ते थे। यह गुरू साहिब जी के खास दरबारी सिक्खों में से एक थे। यह गुरू साहिब जी के आसपास ही रहते थे। इन्होंने निरमोहगढ़ और श्री आनँदपुर साहिब जी की लड़ाईयों में बहुत ही बहादुरी का परिचय दिया था, जब मैदान में उतरते तो तुरक अली-अली करने लग जाते थे। आपका नाम पहले भाई ईशरदास था, जो कि अमृतपान करने के बाद भाई ईशर सिंघ मुक्ता हो गया। 20 दिसम्बर 1705 को जब गुरू साहिब जी ने श्री आनँदपुर साहिब जी छोड़ने का निर्णय लिया तो गुरू साहिब जी के साथ जीने मरने की कसम खानें वाले 39 ओर सिक्खों के साथ आप भी थे। इन 40 सिक्खों को श्री आनँदपुर साहिब जी के 40 मुक्ते कहकर सम्बोधित किया जाता है। गुरू साहिब जी के साथ यह कोटला निहँग से होते हुए श्री चमकौर साहिब जी पहुँचे। सारे के सारे सिक्ख थके हुए थे। सभी ने बुधीचँद रावत की गढ़ी में डेरा डाल लिया। दूसरी ओर किसी चमकौर निवासी ने यह जानकारी रोपड़ जाकर वहाँ के थानेदार को दे दी। इस प्रकार मुगल फौजें चमकौर की गढ़ी में पहुँच गईं। सँसार का सबसे अनोखा युद्ध आरम्भ हो गया। मुगलों की गिनती लगभग 10 लाख के आसपास थी। कुछ ही देर में जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई। सिक्खों ने गुरिल्ला लड़ाई का सहारा लिया। सिक्ख पाँच-पाँच का जत्था लेकर गढ़ी में से निकलते और लाखों हमलावरों के जूझते और तब तक जूझते रहते जब तक कि शहीद नहीं हो जाते। शाम तक बहुत से सिक्ख शहीद हो चुके थे। साहिबजादा अजीत सिंघ जी और साहिबजादा जुझार सिंघ जी भी शहीदी पा गए थे। रात होने तक 35 सिक्ख शहीद हो चुके थे। इनमें भाई ईशर सिंघ मुक्ता जी भी शामिल थे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.