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2. बीबी भिख्खां जी

  • नामः बीबी भिख्खां जी
    पिता का नामः भाई बजर सिंघ जी
    पति का नामः भाई आलिम सिंघ नच्चणा (शहीद)
    पुत्रों के नामः मोहर सिंघ, अमोलक सिंघ, बाघड़ सिंघ (तीनों शहीद)
    दादा का नामः भाई रामा जी
    पड़दादा का नामः सुखीआ मांडन जी (शहीद)
    किस खानदान से संबंधः राठौर-राजपूत खानदान
    कब शहीद हुईः 21 दिसम्बर 1705
    कहाँ शहीद हुईः गाँव झख्खीआँ की जूह सरसा नदी के किनारे
    किसके खिलाफ लड़ीः मुगल फौज

बीबी भिख्खां जी ने 21 दिसम्बर 1705 के दिन गाँव झख्खीआँ की जूह सरसा नदी के किनारे शहीदी हासिल की। बीबी भिख्खां जी भाई बजर सिंघ जी की पुत्री, भाई रामा जी की पोती और सुखीआ मांडन की पड़पोती थीं। बीबी भिख्खां जी के पड़दादा, चाचा और चचेरे भाई गुरू साहिब जी की लड़ाईयों में शहीद हो चुके थे। भाई बजर सिंघ, राठौर-राजपूत खानदान से संबंध रखते थे। आप खैरपूर के निवासी थे। बीबी भिख्खां जी का विवाह भाई आलिम सिंघ नच्चणा, सुपुत्र दुरगा दास, पोता भाई पदमा और पड़पोता कौलदास चौहान-राजपूत के साथ हुआ था। बीबी भिख्खां जी ने तीन पुत्रों (मोहर सिंघ, अमोलक सिंघ, बाघड़ सिंघ) को जन्म दिया। बीबी भिख्खां जी का पति और तीन पुत्र अलग-अलग मौकों पर शहीद हुए। भाई आलम सिंघ नच्चणा श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी के हम उम्र थे। जब वह 13 साल के थे तब वह श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के साथ ही रहने लग गए थे और तभी से वह गुरू परिवार के साथ संबंधित रहे थे। आप बहुत समय तक श्री आनंदपुर साहिब जी के पास ही रहे। बीबी भिख्खां जी भी इस दौरान श्री आनंदपुर साहिब जी रहती रही थीं। बीबी भिख्खां जी गुरू के लंगर की ईन्चाज थीं। सेवा करन में उसका कोई सानी नहीं था। 20 दिसम्बर 1705 की रात को जब गुरू साहिब जी ने श्री आनंदपुर साहिब जी छोड़ा तो बीबी भिख्खां जी भी इसमें शामिल थीं। पाँच सौ सिक्खों का यह काफिला श्री आनँदुपर साहिब जी से कीरतपुर तक चुपचाप निकल गया। पर जब निरमोहगढ़ निकलते समय झख्खीआँ गाँव की जूह में, शाही टिब्बी के पास, सरसा नदी पार करने के लिए वहाँ पर पहुँचा तो पीछे से पहाड़ी फौजों और मुगलों की फौजों ने जबरदस्त हमला कर दिया। 100 सिक्खों ने तुरन्त झख्खीआँ में मोर्चे गाढ़ लिए ताकि बहुत तादात में आ रही हमलावर फौजों को रोका जा सके। सिक्ख चाहते थे कि गुरू साहिब जी और उनका परिवार सरसा नदी पार करके कहीं दूर निकल जाएं। इस जत्थे ने पहले तीरों से फिर तलवारों से हमलावरों का डटकर मुकाबला किया। अपने साथी भाईयों के साथ बीबी भिख्खां जी ने शत्रुओं को मौत से परिचय करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बीबी भिख्खां जी ने कईयों को मौत के घाट उतार दिया और अन्त में आप भी शहीद हो गईं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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