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14. भाई मुकन्द सिंघ

  • नामः भाई मुकन्द सिंघ
    पिता का नामः शहीद भाई मतीदास जी (शहीदी 11 नवम्बर, 1675, चाँदनी चौक, दिल्ली)
    दादा का नामः भाई हीरामल
    पड़दादा का नामः भाई द्वारका दास
    शहीद परागदास आपके पिता के पड़दादा थे।
    किस खानदान से संबंधः बिछर-ब्राहाम्ण खानदान
    भाई मुकन्द सिंघ जी के बड़े भाई, भाई साहिब सिंघ, जो कि गुरू साहिब जी के दीवान भी थे, पहले ही 8 अक्टूबर 1700 के दिन निरमोहगढ़ की लड़ाई में शहीदी हासिल कर चुके थे।
    भाई मुकन्द सिंघ शहीदी के समय तक अभी कुँवारे ही थे।
    कब शहीद हुएः 22 दिसम्बर 1705
    कहाँ शहीद हुएः चमकौर की लड़ाई में
    किसके खिलाफ लड़ेः मुगलों के खिलाफ
    अन्तिम सँस्कार का स्थानः चमकौर की गढ़ी
    अन्तिम सँस्कार कब हुआः 25 दिसम्बर 1705

भाई मुकन्द सिंघ चमकौर की लड़ाई में 22 दिसम्बर 1705 के दिन शहीदी हासिल करने वाले, 40 सिक्खों में शामिल हैं। "भाई मुकन्द सिंघ", शहीद भाई "मतीदास" के सुपुत्र, भाई हीरामल के पोते और भाई द्वारका दास के पड़पोते थे। आप बिछर-ब्राहाम्ण खानदान से संबंध रखते थे। आपका परिवार कई पीढ़ियों से गुरू घर से जुड़ा हुआ था। इस परिवार में से कई लोग सिक्ख पँथ के लिए पहले भी शहीदियाँ हासिल कर चुके थे। आपके पिता भाई मतीदास जी ने 11 नवम्बर के दिन श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी की आँखों के सामने शहीदी जाम पीया था। शहीद परागदास आपके पिता के पड़दादा थे। भाई मुकन्द सिंघ श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी के दरबारी सिक्खों में से एक थे। आप खालसा फौज के एक बहादुर सिपाही थे आपने श्री आनँदपुर साहिब और निरमोहगढ़ की लड़ाईयों में भरपूर हिस्सा लिया था। 20 दिसम्बर 1705 को जब गुरू साहिब जी ने श्री आनँदपुर साहिब जी छोड़ने का निर्णय लिया तो गुरू साहिब जी के साथ जीने-मरने की कसम खानें वाले 39 और सिक्खों के साथ आप भी थे। इन 40 सिक्खों को श्री आनँदपुर साहिब जी के 40 मुक्ते कहकर सम्बोधित किया जाता है। गुरू साहिब जी के साथ यह कोटला निहँग से होते हुए श्री चमकौर साहिब जी पहुँचे। सारे के सारे सिक्ख थके हुए थे। सभी ने बुधीचँद रावत की गढ़ी में डेरा डाल लिया। दूसरी ओर किसी चमकौर निवासी ने यह जानकारी रोपड़ जाकर वहाँ के थानेदार को दे दी। इस प्रकार मुगल फौजें चमकौर की गढ़ी में पहुँच गईं। मुगलों की गिनती लगभग 10 लाख के आसपास थी। कुछ ही देर में जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई। सिक्ख पाँच-पाँच का जत्था लेकर गढ़ी में से निकलते और लाखों हमलावरों के जूझते और तब तक जूझते रहते जब तक कि शहीद नहीं हो जाते। शाम तक बहुत से सिक्ख शहीद हो चुके थे। इनमें भाई मुकन्द सिंघ भी शामिल थे। रात होने तक 35 सिक्ख शहीद हो चुके थे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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