13. भाई नानू सिंघ दिलवाली
भाई नानू सिंघ दिलवाली भाई बाघा के पुत्र, भाई ऊदा के पोते और
भाई कलिआणा के पड़पोते थे। आप छींबा खानदान से संबंध रखते थे। दिल्ली के दिलवाली
इलाके में रहा करते थे। आपके पड़दादा भाई कलियाणा जी ने अपने घर के एक हिस्से को
धर्मशाला बनाया हुआ था। यहाँ पर हर रोज संगतें एकत्रित होकर कीर्तन करती थीं। बाहर
से आए हुए लोग भी उसमें रहते थे। इससे पता लगता है कि भाई कलियाणा जी गुरू घर के
प्रॅमुख सिक्खों में से थे और वह दिल्ली की संगत के मुखी थे। भाई नानू सिंघ दिलवाली
जी के भाई, भाई तुलसा जी श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के समय में दिल्ली के मसंद
थे। जब श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी ने मसंदों की परीक्षा ली थी तो भाई तुलसा
जी उन मसंदों में से एक थे जो कि साफ और सच्चे निकले थे और परीक्षा में सफल हुए थे।
जब श्री गुरू तेग बहादर जी की शहीदी के पश्चात उनका पवित्र सीस दिल्ली के चाँदनी
चौक से भाई जैता, भाई ऊदा और भाई आज्ञा (भाई जैता के पिता जी) जी लेकर आए तो उनके
साथ भाई नानू सिंघ दिलवाली भी थे। भाई नानू सिंघ जी का पहला नाम भाई नानू राम था।
जब गुरू साहिब जी ने खालसा प्रकट किया तो आपने पहले दिन चौथे बैच में अमृतपान करके
भाई नानू राम जी से भाई नानू सिंघ बन गए। भाई नानू सिंघ दिलवाली एक दिलेर, हिम्मती
और बहादुर नौजवान थे। उन्होंने श्री आनँदपुर साहिब और श्री निरमोहगढ़ साहिब जी की
लड़ाईयों में हिस्सा लिया था। 20 दिसम्बर 1705 को जब गुरू साहिब जी ने श्री आनँदपुर
साहिब जी छोड़ने का निर्णय लिया तो गुरू साहिब जी के साथ जीने मरने की कसम खानें वाले
39 और सिक्खों के साथ आप भी थे। इन 40 सिक्खों को श्री आनँदपुर साहिब जी के 40
मुक्ते कहकर सम्बोधित किया जाता है। गुरू साहिब जी के साथ यह कोटला निहँग से होते
हुए श्री चमकौर साहिब जी पहुँचे। सारे के सारे सिक्ख थके हुए थे। सभी ने बुधीचँद
रावत की गढ़ी में डेरा डाल लिया। दूसरी ओर किसी चमकौर निवासी ने यह जानकारी रोपड़
जाकर वहाँ के थानेदार को दे दी। इस प्रकार मुगल फौजें चमकौर की गढ़ी में पहुँच गईं।
मुगलों की गिनती लगभग 10 लाख के आसपास थी। कुछ ही देर में जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई।
सिक्ख पाँच पाँच का जत्था लेकर गढ़ी में से निकलते और लाखों हमलावरों के जूझते और तब
तक जूझते रहते जब तक कि शहीद नहीं हो जाते। शाम तक बहुत से सिक्ख शहीद हो चुके थे।
इनमें भाई नानू सिंघ दिलवाली भी शामिल थे।