12. भाई दान सिंघ परमार
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नामः भाई दान सिंघ परमार
पुराना नामः दुनीचँद
अमृतपान करने के बाद नामः भाई दान सिंघ
पिता का नामः भाई माईदास जी
दादा का नामः भाई बल्लू शहीद जी
पड़दादा का नामः भाई मूला जी
भाई का नामः भाई मनी सिंघ जी
भाई दान सिंघ परमार के चार पुत्र थेः भाई सुजान सिंघ, भाई संगत सिंघ, भाई बाल
सिंघ और भाई तेगा सिंघ।
भाई दान सिंघ परमार के चारों पुत्र भी खालसा फौज में भर्ती हुए थे।
कब शहीद हुएः 22 दिसम्बर 1705
कहाँ शहीद हुएः चमकौर की गढ़ी
किसके खिलाफ लड़ेः मुगलों के खिलाफ
अन्तिम सँस्कार का स्थानः चमकौर की गढ़ी
अन्तिम सँस्कार कब हुआः 25 दिसम्बर 1705
भाई दान सिंघ परमार भी 22 दिसम्बर 1705 में चमकौर की गढ़ी के
बाहर जूझते हुए शहीद हुए थे। "भाई दान सिंघ परमार" भाई मनी सिंघ जी के भाई थे, भाई
माईदास जी के बेटे और भाई बल्लू शहीद जी के पोते और भाई मूला जी के पड़पोते थे। इस
परिवार ने दर्जनों शहीदियाँ प्राप्त की हैं। भाई दान सिंघ परमार के बचपन का नाम
दुनीचँद जी था और अमृतपान करने के बाद उनका नाम दान सिंघ हो गया। आप बहुत ही बहादुर
और जँगजूँ योद्धा थे। आप श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी की फौज के बहादुर सिपाहियों में
से एक थे। आपने निरमोहगढ़ और श्री आनँदपुर साहिब जी की लड़ाईयों में भरपुर हिस्सा लिया
था। 20 दिसम्बर 1705 को जब गुरू साहिब जी ने श्री आनँदपुर साहिब जी छोड़ने का निर्णय
लिया तो गुरू साहिब जी के साथ जीने मरने की कसम खानें वाले 39 और सिक्खों के साथ आप
भी थे। इन 40 सिक्खों को श्री आनँदपुर साहिब जी के 40 मुक्ते कहकर सम्बोधित किया
जाता है। गुरू साहिब जी के साथ यह कोटला निहँग से होते हुए श्री चमकौर साहिब जी
पहुँचे। सारे के सारे सिक्ख थके हुए थे। सभी ने बुधीचँद रावत की गढ़ी में डेरा डाल
लिया। दूसरी ओर किसी चमकौर निवासी ने यह जानकारी रोपड़ जाकर वहाँ के थानेदार को दे
दी। इस प्रकार मुगल फौजें चमकौर की गढ़ी में पहुँच गईं। मुगलों की गिनती लगभग 10 लाख
के आसपास थी। कुछ ही देर में जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई। सिक्ख पाँच पाँच का जत्था
लेकर गढ़ी में से निकलते और लाखों हमलावरों के जूझते और तब तक जूझते रहते जब तक कि
शहीद नहीं हो जाते। भाई दान सिंघ परमार जी गढ़ी से बाहर निकलकर आए और हमलावरों से
भिड़ गए। अनेकों को मौत के घाट उतारकर आप भी शहीद हो गए।