10. भाई अजब सिंघ परमार
भाई अजब सिंघ परमार भी चमकौर की गढ़ी के बाहर जूझते हुए शहीद हुए
थे। भाई अजब सिंघ परमार भाई मनी सिंघ जी के पुत्र, भाई माईदास जी के पोते और भाई
बल्लू शहीद जी के पड़पोते थे। इस परिवार ने दर्जनों शहीदियाँ प्राप्त की हैं। भाई
अजब सिंघ भाई मनी सिंघ जी के पाँचवें पुत्र थे। आप भाई लख्खी शाह वणजारा के दोहते
भी थे। भाई अजब सिंघ परमार भाई मनी सिंघ जी के उन पाँच बेटों में से एक थे जिनको
भाई मनी सिंघ जी ने गुरू साहिब जी को अर्पित किया था। इसी कारण यह पाँचों गुरू
साहिब जी के साथ श्री आनँदपुर साहिब जी में ही रहते थे। जब गुरू साहिब जी ने खालसा
पँथ की स्थापना की तो पाँच प्यारों और पाँच मुक्तों के बाद पहले बैच में आपने
अमृतपान किया था और भाई अजब दास से भाई अजब सिंघ बन गए थे। भाई अजब सिंघ परमार ने
गुरू साहिब जी की सारी लड़ाईयों में हिस्सा लिया था। 20 दिसम्बर 1705 को जब गुरू
साहिब जी ने श्री आनँदपुर साहिब जी छोड़ने का निर्णय लिया तो गुरू साहिब जी के साथ
जीने मरने की कसम खानें वाले 39 ओर सिक्खों के साथ आप भी थे। इन 40 सिक्खों को श्री
आनँदपुर साहिब जी के 40 मुक्ते कहकर सम्बोधित किया जाता है। गुरू साहिब जी के साथ
यह कोटला निहँग से होते हुए श्री चमकौर साहिब जी पहुँचे। सारे के सारे सिक्ख थके
हुए थे। सभी ने बिधीचँद रावत की गढ़ी में डेरा डाल लिया। दूसरी ओर किसी चमकौर निवासी
ने यह जानकारी रोपड़ जाकर वहाँ के थानेदार को दे दी। इस प्रकार मुगल फौजें चमकौर की
गढ़ी में पहुँच गईं। मुगलों की गिनती लगभग 10 लाख के आसपास थी। कुछ ही देर में
जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई। सिक्ख पाँच-पाँच का जत्था लेकर गढ़ी में से निकलते और लाखों
हमलावरों के जूझते। भाई अजब सिंघ जी पहले बैच में ही गढ़ी से बाहर निकलकर आए और
हमलावरों से भिड़ गए। कईयों को मौत की दुलहन से शादी करवाकर उनकी विदाई की। अनेकों
को मौत के घाट उतारकर आप भी शहीद हो गए।