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1. भाई जीवन सिंघ (जैता) जी

  • नामः भाई जीवन सिंघ (जैता) जी
    जन्मः 1661
    पिता का नामः सदा नँद जी
    माता का नामः प्रेमो जी
    जन्म स्थानः श्री पटना साहिब जी
    महान सेवाः श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी का शीश दिल्ली से श्री आनंदपुर साहिब जी लेकर आए।
    पुराना नामः भाई जैता जी
    अमृतपान करने के बाद नामः भाई जीवन सिंघ जी
    अदभुत कुर्बानीः चमकौर की गढ़ी में गुरू जी की पोशाक पहनकर बैठ गए और गुरू जी को वहाँ से पाँच प्यारों का हुक्म सुनाकर रवाना कर दिया।
    कब शहीद हुएः 23 दिसम्बर 1705
    कहाँ शहीद हुएः चमकौर की गढ़ी, श्री चमकौर साहिब जी
    किसके खिलाफ लड़ेः 10 लाख मुगल फौजों के साथ
    अन्तिम सँस्कार का स्थानः चमकौर की गढ़ी
    अन्तिम सँस्कार कब हुआः 25 दिसम्बर 1705

भाई जीवन सिंघ (जैता) जी सिक्ख कौम के महान योद्धा, अणखीले और महान तपस्वी थे। इनका जन्म पिता सदा नँद जी और माता प्रेमो जी के घर सावण सुदी सँमत 1661 को नौवें गुरू तेग बहादर जी के आर्शीवाद से श्री पटना साहिब में हुआ। भाई जैता जी का बचपन श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी के साथ ही गुजरा। बचपन से ही गुरू घर में रहते हुये होश सम्भालने के साथ-साथ हथियार चलाने की विद्या जैसेः तीर-अँदाजी, घुड़-सवारी, बन्दूक चलाना आदि में निपुणता हासिल कर ली। गुरू तेग बहादर साहिब जी ने जब कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए गिरफ्तारी दी तो उस समय पाँच सिक्खों में भाई जैता जी भी शामिल थे। जेल समय में नवें पातशाह द्वारा रचे गये 57 सलोक गुरगद्दी देने की सामाग्री श्री आनंदपुर साहिब जी पहुँचाकर महान सेवा की जिम्मेदारी निभाई और जेल के समय के हालात से अवगत करवाया, जिससे बाल गोबिन्द राय को पिता जी की शहादत होने के बारे में पक्का यकीन हो गया। भरे हुऐ दीवान में पिता जी का शीश लाने के लिए निडर सूरमें की माँग की, तो चारों तरफ सन्नाटा छा गया, पर भाई जैता जी ने गुरू साहिब जी का हुक्म मानकर ये महान सेवा निभाई। नवें गुरू जी का पावन शीश चाँदनी चौक दिल्ली से श्री आनँदपुर साहिब पहुँचाकर "रधुरेटे गुरू के बेटे" होने का मान हासिल किया। अमृत की दात पाकर भाई जैता जी, भाई जीवन सिंघ बन गए। सरसा नदी के किनारे पर हुऐ भयानक युद्ध में साहिबजादा अजीत सिंघ जी को दुशमनों की फौज के घेरे से सुरक्षित निकाल लाये और गुरू साहिब जी के साथ गिनती के सिंघों समेत चमकौर में पहुँचे, तभी मुगल फौजों ने घेर लिया। बड़े साहिबजादे शहीद हो गये। बाबा जीवन सिंघ जी के चार साहिबजादों में से दोः 1. भाई गुलजार सिंघ और 2. भाई गुरदियाल सिंघ सरसा नदी के भयानक युद्ध में और 3. भाई सुखा सिंघ और 4. सेवा सिंघ चमकौर की गढ़ी में शहीद हो गए। दसवें गुरू जी ने जब जँग में जाने का विचार बनाया तो बाकी बचे सिक्खों ने पाँच प्यारे को भेजकर पँथ का हुक्म सुनाया और चमकौर की गढ़ी छोड़ने के लिए कहा श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी ने गढ़ी छोड़ने से पहले अपने हमशक्ल शिरोमणी बाबा जीवन सिंघ जी को कलगी सजाकर शास्त्र सौंप दिये, ताकि मुगल फौजों को गुरू साहिब के गढ़ी में होने बारे में भ्रम बना रहे। कलगी और पोशाक के बारे दरबारी कवि कँकण लिखते हैः

निज कलगी सिर रही सजाई ।।
कई पुशाक आपनी पहिराई ।।
जीवन सिंघ को बुरज बठाई ।।
तजि गढ़ी गुरू गोबिन्द सिंघ जाई ।।
(दस गुरू कथा, पन्ना नम्बर 66)

बाबा जीवन सिंघ जी ने बहादुरी से 10 लाख फौजों से जँग की। 23 दिसम्बर 1705 ईस्वी को शिरोमणी बाबा जीवन शहीद हो गए और आप जी ने गुरू जी का कथनः "सवा लाख से एक लड़ाऊँ, तबैह गोबिन्द सिंघ नाम कहाऊँ" को असली रूप में साकार किया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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