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7. भाई सँगत राए जी

  • नामः भाई संगत राए जी
    पिता का नामः भाई जग्गू (जगता)
    दादा का नामः भाई पदमा
    पड़दादा का नामः भाई कौलदास
    किस खानदान से संबंधः चौहान राजपूत ख़ानदान
    सिक्खी में जुड़ेः श्री गुरू अरजन जी साहिब जी के समय से
    भाई संगत राए के पाँच और भाई (हनूमंत, सहिज, डोगर, हीरा, दिआल) भी अलग-अगल मुकामों पर शहीद हुए थे।
    भाई हनुमंत तो भाई संगत राए के साथ ही शहीद हुए थे।
    किस युद्ध में शहीद हुएः गुलेर की लड़ाई में
    कब शहीद हुएः 1696
    किसके खिलाफ लड़ेः मुगल और पहाड़ियों की फौजों से

भाई सँगत राए जी भाई जग्गू (जगता) के बेटे, भाई पदमा के पोते और भाई कौलदास के पड़पोते थे। आप चौहान राजपूत ख़ानदान से संबंध रखते थे। उन्हीं दिनों यह परिवार दबूरजी ऊदै करन वाली, जिला सिआलकोट में रह रहा था। यह गाँव भाई ऊदै करन (पुत्र भाई हाजल, पोता भाई गोइल) के नाम से बसा हुआ था। भाई ऊदै करन का पोता भाई कौल दास, भाई सँगत राए का पड़पौता था। यह चौहान परिवार श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के समय से ही सिक्ख धर्म अपना चुका था। इस परिवार के गुरू साहिब जी के साथ बड़े नजदीकी संबंध रहे थे। जब श्री गुरू हरिगोबिन्द साहिब जी ने फौज बनाई तो भाई सँगत राए जी के पिता जी, चाचा और चचेरे भाई उस फौज में शामिल हुए थे। उनमें से भाई किशना जी (पुत्र भाई कौल दास) करतारपुर की जँग में शहीद हुए थे। इसी प्रकार भाई सँगत राए के ताऊ भाई दुरगा के पुत्र भाई आलम सिंघ नच्चणा (जो श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी का डिओड़ी बरदार था) और उसके पुत्रों ने चमकौर की लड़ाई में 7 दिसम्बर 1705 के दिन शहीदी प्राप्त की थी। भाई सँगत राए के पाँच और भाई (भाई हनूमँत जी, भाई सहिज जी, भाई डोगर जी, भाई हीरा जी और दिआल भाई जी) भी अलग-अगल मुकामों पर शहीद हुए थे। भाई हनुमँत जी तो भाई संगत राए जी के साथ ही शहीद हुए थे। भाई सँगत राए की शहीदी 1696 के दिन गुलेर की लड़ाई में हुई थी। इस लड़ाई में सिक्ख फौजें गुलेर के राजा की सहायता के लिए गई हुई थीं। राजा गोपाल जो कि गुलेर का राजा था उस पर लाहौर के सूबेदार के द्वारा भेजे गए हुसैन खाँ ने हमला किया था। इस हमले में हुसैन खाँ की मदद किरपाल चँद कटोचीआ और अजमेरचँद बिलासपुरिआ भी कर रहे थे। भाई सँगत की जी शहीदी का जिक्र बचित्र नाटक में भी किया गया हैः

सात सवारन के सहित जूझे संगत राइ ।।
दरसो सुणि जूझे तिनै बहुत जुझत भयो आइ ।।57।।

इस लड़ाई में भाई संगत के तीरों ने एक समय तो रणक्षेत्र में कहर ही मचा कर रख दिया था। इस बहादुर ने किरपाल चँद कटोचीऐ का हमला पछाड़कर रख दिया था। आखिर पहाड़ी फौज के बहादुर सिपाही का एक तीर सीधा भाई सँगत राए जी को लगा। भाई संगत राए जी वहीं पर शहीदी पा गए पर जाने से पहले किरपाल चँद कटोचीऐ को बूरी तरह जख्मी कर दिया। इस लड़ाई में अजमेर चँद बिलासपुरीऐ की दाईं बाँह में एक तीर लगा, जिससे वह बूरी तरह से जख्मी हो गया। इस प्रकार से पहाड़ी फौजें मैदान से भाग गईं और सिक्ख फौजों की जीत हुई।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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