66. भाई केसरा सिंघ जी
भाई केसरा सिंघ जी भी उन 40 सिक्खों में शामिल हैं जिन्होंने
चमकौर की गढ़ी से बाहर निकलकर 20 दिसम्बर 1705 में मुगल हमलावरों के साथ लड़ते हुए
शहादत का जाम पीया। यह शहीदी अन्धेरा होने से पहले हुई थी। आपने निरमोहगढ़ और श्री
आनँदपुर साहिब जी की लड़ाईयों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। आप श्री गुरू गोबिन्द
सिंघ साहिब जी की फौज और दरबार के एक खास सिक्ख थे। आप भी उन 40 सिक्खों में से एक
थे, जिन्होंने गुरू साहिब जी के साथ जीने-मरने की कसमें खाईं थी। इन 40 सिक्खों के
जत्थे को गुरू साहिब जी ने 40 मुक्ते कहा, जिन्हें कि श्री आनँदपुर और श्री चमकौर
साहिब जी के 40 मुक्ते भी कहा जाता है। 20 दिसम्बर 1705 को जब गुरू साहिब जी ने श्री
आनँदपुर साहिब जी छोड़ने का निर्णय लिया तो गुरू साहिब जी के साथ जीने-मरने की कसम
खानें वाले 39 ओर सिक्खों के साथ आप भी थे। इन 40 सिक्खों को श्री आनँदपुर साहिब जी
के 40 मुक्ते कहकर सम्बोधित किया जाता है। गुरू साहिब जी के साथ यह कोटला निहँग से
होते हुए श्री चमकौर साहिब जी पहुँचे। सारे के सारे सिक्ख थके हुए थे। सभी ने
बुधीचँद रावत की गढ़ी में डेरा डाल लिया। दूसरी ओर किसी चमकौर निवासी ने यह जानकारी
रोपड़ जाकर वहाँ के थानेदार को दे दी। इस प्रकार मुगल फौजें चमकौर की गढ़ी में पहुँच
गईं। सँसार का सबसे अनोखा युद्ध आरम्भ हो गया। जबकि मुगलों की गिनती लगभग 10 लाख के
आसपास थी। कुछ ही देर में जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई। सिक्खों ने गुरिल्ला लड़ाई का
सहारा लिया। सिक्ख पाँच-पाँच का जत्था लेकर गढ़ी में से निकलते और लाखों हमलावरों के
जूझते और तब तक जूझते रहते जब तक कि शहीद नहीं हो जाते। शाम तक बहुत से सिक्ख शहीद
हो चुके थे। साहिबजादा अजीत सिंघ जी और साहिबजादा जुझार सिंघ जी भी शहीदी पा गए थे।
रात होने तक 35 सिक्ख शहीद हो चुके थे। इनमें भाई केसरा सिंघ जी भी शामिल थे। इन
शहीदों का अन्तिम सँस्कार इसी स्थान पर 25 दिसम्बर 1705 वाले दिन किया गया।