63. भाई कीरत सिंघ जी
भाई कीरत सिंघ जी भी उन 40 सिक्खों में शामिल हैं जिन्होंने
चमकौर की गढ़ी से बाहर निकलकर मुगल हमलावरों के छक्के छुड़ाते हुए शहादत का जाम पीया।
आप श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी की फौज और दरबार के एक खास सिक्ख थे। एक मौके
मुताबिक भाई कीरत सिंघ जी वो ही थे जिन्हें 29 अगस्त 1698 के बाद श्री गुरू गोबिन्द
सिंघ साहिब जी ने गुरू का चक्क (श्री अमृतसर साहिब जी) की सेवा-सम्भाल के लिए भेज
दिया था। हो सकता है कि वो किसी कार्य से श्री आनँदपुर साहिब जी आए हों और लम्बे
समय तक फौजों का घेरा पड़ने की वजह से वहीं पर रह गए और वो उन 40 सिक्खों में भी
शामिल हो गए जिन्होंने गुरू साहिब जी के साथ जीने और मरने की कसमें खाई थीं। 20
दिसम्बर 1705 को जब गुरू साहिब जी ने श्री आनँदपुर साहिब जी छोड़ने का निर्णय लिया
तो गुरू साहिब जी के साथ जीने-मरने की कसम खानें वाले 39 ओर सिक्खों के साथ आप भी
थे। इन 40 सिक्खों को श्री आनँदपुर साहिब जी के 40 मुक्ते कहकर सम्बोधित किया जाता
है। गुरू साहिब जी के साथ यह कोटला निहँग से होते हुए श्री चमकौर साहिब जी पहुँचे।
सारे के सारे सिक्ख थके हुए थे। सभी ने बुधीचँद रावत की गढ़ी में डेरा डाल लिया।
दूसरी ओर किसी चमकौर निवासी ने यह जानकारी रोपड़ जाकर वहाँ के थानेदार को दे दी। इस
प्रकार मुगल फौजें चमकौर की गढ़ी में पहुँच गईं। सँसार का सबसे अनोखा युद्ध आरम्भ हो
गया। जबकि मुगलों की गिनती लगभग 10 लाख के आसपास थी। कुछ ही देर में जबरदस्त लड़ाई
शुरू हो गई। सिक्खों ने गुरिल्ला लड़ाई का सहारा लिया। सिक्ख पाँच-पाँच का जत्था
लेकर गढ़ी में से निकलते और लाखों हमलावरों के जूझते और तब तक जूझते रहते जब तक कि
शहीद नहीं हो जाते। शाम तक बहुत से सिक्ख शहीद हो चुके थे। साहिबजादा अजीत सिंघ जी
और साहिबजादा जुझार सिंघ जी भी शहीदी पा गए थे। रात होने तक 35 सिक्ख शहीद हो चुके
थे। इनमें भाई कीरत सिंघ जी भी शामिल थे।