6. भाई मूलचँद निझर
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नामः भाई मूलचँद निझर
पिता का नामः भाई रधुपति निझर
दादा का नामः भाई रघुपति राए
किस खानदानसे संबंधः कंबोज खानदान या परिवार
भाई मूलचँद निझर जी का भाई, अमर सिंघ, बाद में बाबा बन्दा सिंघ बहादुर जी की
फौज में शामिल हो गया था।
यह वो ही अमर सिंघ था जो कि बँदेई खालासा और तत्त खालसा के आपसी झगड़े में बँदेई
खालसे का आगू था।
सिक्खी में जुड़ेः श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के समय से
किस युद्ध में शहीद हुएः नादौन के युद्ध में
कब शहीद हुएः 1991
किसके खिलाफ लड़ेः अलीफखान (मुगल)
भाई मूलचँद निझर, भाई रघुपति निझर के बेटे थे। आप कंबोज खानदान
से संबंध रखते थे। भाई रघुपति राए खेमकरण (पहले जिला लाहौर, अब जिला अमृतसर साहिब
जी) के एक बड़े जागीरदार और चौधरी थे। 7 दिसम्बर 1664 के दिन जब नौवें गुरू श्री गुरू
तेग बहादर साहिब जी श्री गोइँदवाल साहिब जी में थे तो भाई रघुपति राए जी ने उनके
दर्शन किए और वह गुरू साहिब जी को खेमकरण ले गए। भाई रघुपति राए जी ने गुरू साहिब
जी का शाहाना स्वागत किया और उनकी खूब सेवा की। गुरू साहिब जी 15 दिन तक खेमकरण में
रहे। श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी की शहादत के बाद रघुपति जी श्री गुरू गोबिन्द
सिंघ साहिब जी के दरबार में उनके दर्शन करने के लिए आते रहे। उनका एक बेटा भाई
मूलचँद निझर था जो श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी की फौज में भर्ती हो गया। यह एक
बहादुर और दिलेर नौजवान था। 1991 में जब लाहौर के सूबेदार ने पहाड़ी राजाओं से लगान
लेने के लिए अलिफखान की अगुवाई में फौज भेजी तो बिलासपुर के राजा भीमचँद ने गुरू
साहिब जी से मदद माँगी। गुरू साहिब जी सिक्ख फौजों को लेकर नादौन कस्बे में पहुँचे।
यहाँ पर ब्यास दरिया के किनारे पर हमलावर मुगल फौजों की पहाड़ी और खालसा सेना के साथ
जबरदस्त टक्कर हुई। इस लड़ाई में सिक्ख योद्धाओं ने दिलो-जान से हिस्सा लिया और
हमलावर फौजियों का नाकों चने चबवा दिए और मौत की दुलहन से शादी रचा दी। इस लड़ाई में
खूब लोहा खड़का। इस युद्ध में भाई मूलचँद निझर शहीदी जाम पी गए।