57. भाई देवा सिंघ मुक्ता
महत्वपूर्ण नोटः कई इतिहासकार यह लिखते हैं कि 5 प्यारों
के बाद 5 मुक्तों ने अमृतपान किया था, लेकिन सही बात तो यह है कि 5 प्यारों के बाद
श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी ने अमृतपान किया था। इसलिए यहाँ पर हमने पहले
मुक्ते को अमृतपान करने के मामले में 7 वां नम्बर दिया है।
भाई देवा सिंघ मुक्ता जी ने भी 22 दिसम्बर 1705 के दिन चमकौर की
गढ़ी में शहीदी हासिल की थी। आप भी श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी के प्रॅमुख
सिक्खों में से एक थे। आप घुमेआणा के रहने वाले थे। भाई देवा सिंघ मुक्ता का पहला
नाम भाई देवाराम था। जब उन्होंने अमृतपान किया तो उनका नाम भाई देवा सिंघ मुक्ता हो
गया। मुक्ता इसलिए क्योंकि पाँच प्यारों के बाद पाँच मुक्तों ने अमृतपान किया था।
पाँच प्यारों के बाद पाँच और सिक्ख अमृतपान करने के लिए गुरू साहिब जी को अपना सीस
देने के लिए उठे थे, गुरू साहिब जी ने उन्हें पाँच मुक्तों का नाम दिया। भाई देवा
सिंघ मुक्ता जी उन पाँचों में से सबसे पहले खड़े हुए थे। इसका मतलब यह हुआ कि पहले
पाँच प्यारों ने अमृतपान किया फिर उनसे गुरू साहिब जी ने अमृतपान किया फिर पाँच
मुक्तों ने अमृतपान किया यानि अमृतपान करने वाले भाई देवा सिंघ मुक्ता सातवें नम्बर
के सिंघ बने। इसके बाद भाई देवा सिंघ मुक्ता हमेशा श्री आनँदुपर साहिब जी में गुरू
साहिब जी के साथ रहे। भाई देवा सिंघ मुक्ता गुरू साहिब जी की फौज में एक अहम
सिपाहियों में से एक थे। आपने श्री आनँदपुर साहिब और निरमोहगढ़ साहिब जी की लड़ाई में
खूब जौहर दिखाए। 20 दिसम्बर 1705 को जब गुरू साहिब जी ने श्री आनँदपुर साहिब जी
छोड़ने का निर्णय लिया तो गुरू साहिब जी के साथ जीने-मरने की कसम खानें वाले 39 और
सिक्खों के साथ आप भी थे। इन 40 सिक्खों को श्री आनँदपुर साहिब जी के 40 मुक्ते
कहकर सम्बोधित किया जाता है। गुरू साहिब जी के साथ यह कोटला निहँग से होते हुए श्री
चमकौर साहिब जी पहुँचे। सारे के सारे सिक्ख थके हुए थे। सभी ने बुधीचँद रावत की गढ़ी
में डेरा डाल लिया। दूसरी ओर किसी चमकौर निवासी ने यह जानकारी रोपड़ जाकर वहाँ के
थानेदार को दे दी। इस प्रकार मुगल फौजें चमकौर की गढ़ी में पहुँच गईं। सँसार का सबसे
अनोखा युद्ध आरम्भ हो गया। जबकि मुगलों की गिनती लगभग 10 लाख के आसपास थी। कुछ ही
देर में जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई। सिक्ख पाँच-पाँच का जत्था लेकर गढ़ी में से निकलते
और लाखों हमलावरों के जूझते और तब तक जूझते रहते जब तक कि शहीद नहीं हो जाते। शाम
तक बहुत से सिक्ख शहीद हो चुके थे। साहिबजादा अजीत सिंघ जी और साहिबजादा जुझार सिंघ
जी भी शहीदी पा गए थे। रात होने तक 35 सिक्ख शहीद हो चुके थे। इनमें भाई देवा सिंघ
मुक्ता जी भी शामिल थे।