54. भाई साहिब सिंघ जी (प्यारा)
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असली नाम: भाई साहिब चंद जी
अमृतपान करने के बाद नाम: भाई साहिब सिंघ जी
साहिब सिंघ जी नाई परिवार से संबंध रखते हैं।
जन्म: सन 1662 बिदर, कर्नाटक
पिता का नाम: तीरथ चंद (चमनलाल) जी
माता का नाम: माता देवीबाई जी
अमृतपान करते समय उम्र: 37 वर्ष
वैखाखी 1999: जब गुरू गोबिन्द सिंघ जी को 4 सिक्ख मिल चुके थे तब ठीक इसी
प्रकार गुरू जी पाँचवी बार मँच पर आये और वही प्रश्न संगत के सामने रखा कि मुझे
एक सिर और चाहिए, इस बार बिदर, कर्नाटक का निवासी साहिब चँद नाई उठा और उसने
विनती की कि मेरा सिर स्वीकार करें। उसे भी गुरू जी उसी प्रकार खींचकर तम्बू
में ले गये। अब गुरू जी के पास पाँच निर्भीक आत्मबलिदानी सिक्ख थे जो कि कड़ी
परीक्षा में उतीर्ण हुए थे।
भाई साहिब सिंघ जी ने श्री आनंदपुर साहिब और श्री निरमोहगढ़ साहिब जी में हुए
युद्धों में डटकर दुशमन का मुकाबला किया था।
शहीदी प्राप्त करनी: 7 दिसम्बर 1705 की रात को चमकौर साहिब में हुए युद्ध में
हाथों हाथ लड़ाई में आपने भाई हिम्मत सिंघ और भाई मोहकम सिंघ जी के साथ शहीदी
प्राप्त की।
भाई साहिब सिंह जी भी पाँच प्यारों में से एक थे। भाई साहिब जी
भाई तीरथ चंद (चमनलाल) के सुपुत्र थे। इन्होंने एक नाई परिवार में जन्म लिया था। वो
बिदर, कर्नाटक के वासी थे। जब श्री गुरू नानक देव साहिब जी अपनी उदासी के दौरान
बिदर गए तो वहाँ पर उन्होंने एक परमात्मा के नाम को जपने की आवाज बुलँद की तो इस
आवाज ने कई परिवारों को सिक्ख पंथ में शामिल कर लिया। इन्हीं परिवारों में भाई
तीर्थ चंद (चमनलाल) के बड़े बुर्जूग भी शामिल थे। गुरू साहिब जी की बाणी का ऐसा असर
हुआ कि इस परिवार ने नाई का काम छोड़ दिया और मेहनत मजदूरी से रोटी अर्जित करने लगे।
यह परिवार गुरू नानक देव जी के समय से ही गुरू साहिबानों के दर्शन करने के लिए
पँजाब में आने लगा। एक बार तीरथ चंद (चमनलाल) गुरू साहिब के पास अपने पुत्र
साहिबचंद को लेकर आए। यह बात सन 1685 की है। भाई साहिब चंद उस समय 23 साल के थे। जब
भाई साहिब चंद जी ने गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी के दर्शन किए और उनके बचन सुने तो
वह भाव विभोर हो गया और सदा के लिए गुरू साहिब जी का ही हो कर रह गया। गुरू गोबिन्द
सिंघ जी अप्रैल 1685 से लेकर अक्टूबर 1688 तब श्री पाउंटा साहिब में रहे। भाई साहिब
चंद जी भी सारा समय गुरू साहिब जी के साथ ही रहे। जब 18 सितम्बर सन 1688 के दिन
गढ़वाल के राजा फतेहशाह ने गुरू साहिब जी पर हमला कर दिया तो भँगाणी के रणक्षेत्र
में हुई लड़ाई में भाई साहिब चंद ने भी डटकर लड़ाई की और वैरियों के खूब छक्के छुड़ाए।
जब गुरू साहिब जी श्री आनंदपुर साहिब वापिस आ गए तो आप भी गुरू साहिब जी के साथ रहे।
इसी प्रकार जब 1699 की वैसाखी वाले दिन गुरू साहिब जी ने खालसा प्रकट किया तो आपने
ने अपने सिर की आहुति दी और आप भी पाँच प्यारों में शामिल हो गए।