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38. भाई काहन सिंघ जी

  • नामः भाई काहन सिंघ जी
    पिता का नामः नेता सिंघ
    दादा का नामः भाई रामा
    पड़दादा का नामः शहीद भाई सुखीआ मांडन
    किस खानदान से संबंधः राठौर-राजपूत
    कब शहीद हुएः 16 जनवरी 1704
    कहाँ शहीद हुएः श्री आनँदपुर साहिब जी
    किसके खिलाफ लड़ेः पहाड़ी राजाओं की फौजों के खिलाफ

भाई काहन सिंघ जी श्री आनँदपुर साहिब जी में 16 जनवरी 1704 के दिन शहीद हुए थे। भाई काहन सिंघ जी भाई नेता सिंघ जी के सुपुत्र, भाई रामा जी के पोते और शहीद भाई सुखीआ मांडन के पड़पोते थे। यह राठौर-राजपूत परिवार से सबंध रखते थे और यह परिवार कई पीढ़ियों से गुरू घर से जुड़ा हुआ था और पँथ की खूब सेवा कर रहा था। इस परिवार में से बहुत लोगों ने पँथ के लिए शहीदियाँ हासिल कीं। भाई काहन सिंघ जी के पड़दादे, पिता, ताऊ, ताऊ के पुत्र पहले ही शहीदियाँ हासिल कर चुके थे। भाई काहन सिंघ जी की शहीदी के बाद भी इस परिवार ने पँथ की बहुत सेवा की। भाई काहन सिंघ जी जनवरी 1704 में श्री आनँदपुर साहिब जी में ही थे। उन दिनों में बिलासपुर और हँडूर (अब नालागढ़) के राजा सिक्खों से बड़ी खार खाते थे। हालाँकि इद दोनों रियासतों के पुराने राजाओं को छठवें गुरू साहिब श्री गुरू हरगोबिन्द सिंघ साहिब जी ने ग्वालियर किले की कैद से छुड़ाया था, लेकिन इन राजाओं के वारिस अहसान फरामोश हो चुके थे। हालाँकि अक्टूबर 1700 के आखिरी में राजा अजमेरचँद की दादी के जीजा राजा सहालीचँद के इन्हें शान्त कर दिया था। किन्तु सहालीचँद की मृत्यु के बाद (25 अक्टूबर 1702) के बाद राजा अजमेरचँद फिर से सिक्खों से पंगे लेने लग गया था। इस कारण सिक्खों और पहाड़ियों के बीच झड़पें होने लग गई थीं। सिक्खों और पहाड़ियों के बीच चल रही कश्मकश आखिर में उस समय एक लड़ाई में बदल गई जब 16 जनवरी 1704 के दिन बिलासपुर के राजा अजमेरचँद ने हँडूरी के राजा और अन्य राजाओं को साथ लेकर श्री आनँदपुर साहिब जी पर हमला कर दिया। यह लड़ाई 7-8 घण्टे तक चलती रही। इस लड़ाई में बहुत सारे पहाड़ी सिपाही मारे गए। आखिर में अन्धेरा होते ही पहाड़ी फौजें भाग गईं। इस लड़ाई में भाई काहन सिंघ जी और कुछ सिंघों ने शहीदियाँ हासिल कीं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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