33. भाई नेता सिंघ जी
भाई नेता सिंघ जी भाई रामे के बेटे, शहीद भाई सुखीआ के पोते और
भाई मांडन के पड़पोते थे। आप के बड़े-बूजुर्ग श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के समय से
ही सिक्ख पँथ का हिस्सा रहे थे आपके पड़दादा भाई मांडन जी ने रूहीला की लड़ाई बड़ी ही
बहादुरी के साथ लड़ी थी। आपके दादा भाई सुखीआ जी (जो भाई मनी सिंघ जी के सगे फूफा
थे) ने महिराज की लड़ाई में बहुत बहादुरी के जौहर दिखाते हुए शहीदी जाम पीया था। भाई
नेता सिंघ जी श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी की फौज के मुखी सिक्खों में से एक
थे। वह गुरू साहिब जी की लड़ाईयों में आगे होकर लड़ते रहे थे। अगस्त 1700 में
बिलासपुर के राजा अजमेरचँद ने श्री आनँदपुर साहिब जी पर हमला कर दिया। 29 अगस्त से
लेकर पहली सितम्बर 1700 तक चार दिन के हमलों में बुरी तरह के मार खाने के बाद
पहाड़ियों ने गुरू साहिब जी से अरज की कि लोगों में उनकी नाक रखने के लिए श्री
आनँदपुर साहिब कुछ समय के लिए खाली कर दें। गुरू साहिब जी पहाड़ियों के फरेब से
वाकिफ थे। पर उनके सिक्खों द्वारा जोर देने पर, 2 अक्टूबर को श्री आनँदगढ़, गुरू
साहिब जी ने छोड़ दिया और श्री कीरतपुर साहिब जी के कुछ आगे गाँव हरदे और निरमोह के
नजदीक एक पहाड़ी पर जाकर डेरा डाल दिया। जब अजमेरचँद को यह पता लगा तो उसने अहसान
फरामोशी करते हुए 8 अक्टूबर को निरमोहगढ़ में गुरू साहिब जी पर हमला कर दिया, जिसमें
उसका बहुत ही नुक्सान हुआ। पहाड़ी राजाओं ने बेईमानी की और अपना वजीर सरहंद के नवाब
के पास भेजकर उसे उकसाया। मुगलों की फौज भी निरमोहगढ़ 13 अक्टूबर को पहुँच गईं। उनकी
कमान नासिर खान के हाथ में थी। रूस्तम खां ने मोर्चे कायम कर लिए। इस लड़ाई में बहुत
सारे मुगल फौजी मारे गए और मुगल फौज के मुख्य जरनैल नासिर खां और स्मतम खां दोनों
मारे गए और मुगल भाग गए। अजमेरचँद ने 14 अक्टूबर को एक बार फिर घेरा डाल दिया। इस
मौके पर बहुत भँयकर लड़ाई हुई। इसमें बहुत सारे पहाड़ी मारे गए और खालसा फौज के जवान
शहीद हो गए, इनमें भाई नेता सिंघ जी उनका भाई जीता सिंघ और जीता सिंघ के बेटे भी
शामिल थे।