32. भाई अजीत सिंघ जी (जीता)
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नामः भाई अजीत सिंघ जी (जीता)
पिता का नामः भाई रामे
दादा का नामः शहीद भाई सुखीआ
पड़दादा का नामः भाई मांडन
सिक्खी में जुड़ेः श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के समय से
भाई अजीत सिंघ जी (जीता) के तीन बेटे प्रसन्न सिंघ, अनूप सिंघ और किहर सिंघ और
एक पोते भाई चंनण सिंघ को जुलाई 1711 में गिरफ्तार करके तीन महीने तक बंदी खाने
में रखकर बहुत भयानक तरीके से तसीहे दिए गए। जब इन चारों और बाकी के 36 सिंघों
ने धर्म ना छोड़ा तो इन सारों को आलोवाल (लाहौर के नजदीक) में जिन्दा जमीन में
गाढ़कर शहीद कर दिया गया था।
कब शहीद हुएः 14 अक्टूबर 1700
कहाँ शहीद हुएः निरमोहगढ़
किसके खिलाफ लड़ेः पहाड़ी राजा और मुगल फौज
भाई अजीत सिंघ जी (जीता) ने 14 अक्टूबर 1700 के दिन निरमोहगढ़
में शहीदी प्राप्त की थी। भाई अजीत सिंघ जी (जीता) भाई रामे के बेटे, शहीद भाई
सुखीआ के पोते और भाई मांडन के पड़पोते थे। आप के बड़े-बूजुर्ग श्री गुरू अरजन देव
साहिब जी के समय से ही सिक्ख पँथ का हिस्सा रहे थे आपके पड़दादा भाई मांडन जी ने
रूहीला की लड़ाई बड़ी ही बहादुरी के साथ लड़ी थी। आपके दादा भाई सुखीआ जी (जो भाई मनी
सिंघ जी के सगे फूफा थे) ने महिराज की लड़ाई में बहुत बहादुरी के जौहर दिखाते हुए
शहीदी जाम पीया था। भाई अजीत सिंघ जी (जीता) के सबसे छोटे बेटे भाई हिम्मत सिंघ जी
ने सिर्फ एक दिन पहले ही 13 अक्टूबर 1700 के दिन इसी स्थान पर निरमोहगढ़ की लड़ाई में
कई हमलावर मुगल सिपाहियों को मारकर शहादत हासिल की थी। बीते दिन, 13 अक्टूबर 1700
को बिलासपुर के राजा अजमेरचँद ने उकसाकर लाई मुगल फौज के मुखी नासिर खां और रूस्तम
खां के मारे जाने के बाद अजमेरचँद ने 14 अक्टूबर को एक बार फिर हमला कर दिया। इस
लड़ाई में भाई अजीत सिंघ जी (जीता) उनका भाई, भाई नेता सिंघ और भाई अजीत सिंघ जी (जीता)
के दोनों बेटे भाई मोहर सिंघ और भाई सेवा सिंघ शहीदी पा गए।