30. भाई हिम्मत सिंघ जी
भाई हिम्मत सिंघ जी ने भी 13 अक्टूबर 1700 के दिन निरमोहगढ़ में
शहीदी पाई थी। भाई हिम्मत सिंघ जी भाई जीत (अजीत) सिंघ के सुपुत्र, भाई रामा के पोते
और शहीद भाई सुखीया के पड़पोते थे। आप राठैर-राजपूत खानदान से संबंध रखते थे। आपका
परिवार कई पुश्तों से सिक्ख पँथ की सेवा कर रहा था। आपके दादा भाई सुखीया महिराज की
लड़ाई में शहीद हुए थे। भाई सुखीया के पिता भाई मांडन भी रूहीला की लड़ाई में बड़ी
बहादुरी के साथ लड़े और जख्मी हो गए थे। भाई हिम्मत सिंघ जी के चाचा भाई बजर सिंघ जी
ने श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी को शस्त्रों की शिक्षा दी थी। भाई हिम्मत सिंघ
उसके भाई, भाई सेवा सिंघ जी और भाई मनी सिंघ निशानची भी गुरू साहिब की फौज के बहादर
सिपाहियों में शामिल थे। आपके पिता भाई जीता (अजीत) सिंघ जी भी गुरू साहिब जी की
फौज में भर्ती हुए थे। भाई जीता (अजीत) सिंघ जी के 10 बेटे थे। भाई हिम्मत सिंघ जी
सबसे बड़े थे। 10 बेटों में से भाई प्रसन्न सिंघ, अनूप सिंघ और केहर सिंघ 11 अक्टूबर
1711 के दिन आलोवाल में शहीद कर दिए गए थे। इसके अलावा मेहर सिंघ, सेवा सिंघ और मान
सिंघ भी अलग-अलग मौकों पर शहीद हुए थे। जब श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी 4 अक्टूबर को
पहाड़ी राजाओं की विनती पर उनका मान लोगों में रखने के लिए श्री आनँदगढ़ साहिब जी
छोड़कर निरमोहगढ़ चले गए तो पहाड़ी राजाओं ने बेईमानी की और अपना वजीर सरहंद के नवाब
के पास भेजकर उसे उकसाया। मुगलों की फौज भी निरमोहगढ़ 13 अक्टूबर को पहुँच गईं। उनकी
कमान नासिर खान के हाथ में थी। रूस्तम खां ने मोर्चे कायम कर लिए। इस लड़ाई में बहुत
सारे मुगल फौजी मारे गए। इस मौके पर भाई हिम्मत सिंघ जी को भी बहादुरी दिखाने का
अवसर मिला और उन्होंने कई मुगल हताहत किए और फिर आप भी शहीद हो गए।