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3. भाई संगोशाह जी

  • नामः भाई संगोशाह जी
    पिता का नामः भाई साधू जी
    माता का नामः बीबी वीरो (श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी की पुत्री)
    दादा का नामः भाई धरमा खेसला जी
    गुरू गोबिन्द सिंघ जी के साथ रिश्ताः गुरू जी की बुआ के लड़के
    शहीद होने का स्थानः भँगाणी का युद्ध क्षेत्र
    शहीद होने का समयः 1687
    युद्ध में गुरू द्वारा मिली पदवीः शाह संग्राम

भाई संगोशाह जी, भाई साधू के पुत्र और भाई धरमा खेसला के पोते थे। आपकी माता बीबी वीरो जी श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी की पुत्री थीं। भाई जीतमल जी ने भँगाणी की लड़ाई जो 1687 में लड़ी गई थी के दिन शहीदी हासिल की। भाई संगोशाह जी श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी की बुआ के लड़के थे। भाई संगोशाह जी, श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी के श्री आनंदपुर साहिब जी में ही रहते थे। हरीचँद, नजावत आदि पठानों को एक ठिकाने पर खड़ा करके सँगोशाह की ओर झपटा। इसे यह दिख रहा था कि यदि इस ओर जोर पड़ गया तो निश्चय ही हमारी हार हो जायेगी। सँगोशाह यहाँ पर बड़े जोर का युद्ध कर रहा था और शत्रुओं को मार रहा था। राजा गोपाल अभी तक शूरवीरता से जमा खड़ा था। यह हाल देखकर ही हरीचन्द इस ओर लपका था। उधर से मधुकरशाह चन्देल भी इधर को ही आ लपका था। हरीचन्द ने आकर बड़ी वीरता से तीर चलाए, जिसे वे तीर लगे, वहीं मर गया। इसने गुरू जी की सेना के अनेकों वीर हताहत किये। तब इधर से जीतमल जी हरीचन्द को बढ़ते हुए देखकर जूझ पड़े और आमने.सामने दाँव-घाव और वार करने लगे। अब फतेहशाह का सँकेत पाकर नजाबत खाँ भी इधर आ गया और आते ही सँगोशाह के साथ टक्कर लेने लगा। गाजीचन्द चन्देल इतने क्रोध में था कि आगे ही आगे बढ़ता गया। इसके हाथ मे सेला था, जिससे इसने अनेकों शूरवीरों को पिरोया और उन्हें घायल करके पछाड़ दिया। इस तरह बढ़ते-बढ़ते यह सँगोशाह पर आ झपटा, पर उस शूरवीर के आगे इसका कोई वश न चला, टुकड़े होकर धरा पर आ गिरा और अपने स्वामी धर्म को पूरा कर गया। गाजीचन्द की मृत्यु ने नजाबतखाँ के मन में अत्यन्त क्रोध भर दिया। वह थोड़े से पठानों को लेकर तेजी से आगे बढ़ा और सीधा सँगोशाह पर, जो कि गुरू जी की आज्ञा अनुसार आज के युद्ध का सेनापति था, जाकर झपटा। नजाबतखाँ और सँगोशाह गुरू जी के पास किसी समय इक्टठे रहते थे, एक-दूसरे को पहचानते थे, इक्टठें कसरतें किया करते थे। दोनों खूब लड़े। इतनी वीरता से युद्ध हुआ कि दोनों के लिए वाह-वाह हो गई। अन्त में नजाबतखाँ का शस्त्र ठिकाने पर जा लगा, सँगो जी को सख्त चोट आई, पर वे इतने जोश में थे कि बदले का वार किया और नजाबतखाँ मारा गया और सँगोशाह भी गिरा और वीरगति को प्राप्त हुआ। सँगोशाह आज जिस वीरता से लड़ा था, फतेह का काफी भाग उसकी दूरदर्शिता और अचूक वीरता का फल था। उस पर प्रसन्न होकर गुरू जी ने उसे शाहसँग्राम का नाम प्रदान किया था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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