29. भाई राम सिंघ कशमीरी
-
नामः भाई राम सिंघ कशमीरी
पिता का नामः भाई दुनीचँद
इनके पिता भाई दुनीचँद उन 16 कशमीरी ब्राहम्णों में से एक थे, जो भाई किरपाराम
दत्त के साथ 25 मई 1675 के दिन श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के पास फरियाद
लेकर आए थे।
किस परिवार से संबंधः कशमीर के ब्राहम्ण परिवार से
कब शहीद हुएः 13 अक्टूबर 1700
कहाँ शहीद हुएः निरमोहगढ़
किसके खिलाफ लड़ेः पहाड़ी राजाओं और मुगल फौज
भाई राम सिंघ कशमीरी भाई दुनीचँद के बेटे थे। आप कशमीर के
ब्राहम्ण परिवार से संबंध रखते थे। भाई दुनीचँद उन 16 कशमीरी ब्राहम्णों में से एक
थे, जो भाई किरपाराम दत्त के साथ 25 मई 1675 के दिन श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी
के पास फरियाद लेकर आए थे। श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी की शहीदी के बाद भी भाई
दुनीचँद श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी के पास हाजिर होते रहते थे। जब श्री गुरू
गोबिन्द सिंघ साहिब जी ने खालसा पँथ की स्थापना की तो भाई दुनीचँद के बेटे भाई
रामचँद ने भी अमृतपान किया और रामचँद से राम सिंघ बन गए। श्री गुरू गोबिन्द सिंघ
साहिब जी की फौज में और दरबार में राम सिंघ नाम के कई सिक्ख थे इसलिए उन्हें राम
सिंघ कशमीरी कहकर बुलाया जाता था। भाई राम सिंघ कशमीरी श्री गुरू गोबिन्द सिंघ
साहिब जी के साथ बड़ा स्नेह रखते थे। भाई आलिम सिंघ नच्चणा की तरह भाई राम सिंघ
कशमीरी भी हर समय गुरू साहिब जी के पास ही रहते थे। जब श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी 4
अक्टूबर को पहाड़ी राजाओं की विनती पर उनका मान लोगों में रखने के लिए श्री आनँदगढ़
साहिब जी छोड़कर निरमोहगढ़ चले गए तो पहाड़ी राजाओं ने बेईमानी की और अपना वजीर सरहंद
के नवाब के पास भेजकर उसे उकसाया। मुगलों की फौजें भी निरमोहगढ़ 13 अक्टूबर 1700 को
पहुँच गईं। उनकी कमान नासिर खान के हाथ में थी। रूस्तम खां ने मोर्चे कायम कर लिए
और तोप का मूँह गुरू साहिब जी की तरफ करके गोला दाग दिया। इस गोले का निशाना सीधा
भाई राम सिंघ कशमीरी को आकर लगा, जो कि हमेशा गुरू साहिब जी के साथ ही रहते थे, वो
उसी समय शहीद हो गए। जवाब में गुरू साहिब जी ने एक तीर चलाया जो कि नासिर खान को लगा
ओर वह वहीं ढेर हो गया। तभी एक तीर भाई उदै सिंघ जी ने भी चलाया जिससे रूस्तम खां
भी मारा गया।