26. भाई अनूप सिंघ जी
भाई अनूप सिंघ जी 8 अक्टूबर 1700 के दिन निरमोहगढ़ में शहीद हुए
सिंघों में से एक थे। भाई अनूप सिंघ जी दुनीचँद मसंद के पोते थे। दुनीचँद किसी समय
में माझे क्षेत्र का मसंद था। अगस्त 1700 में जब पहाड़ी राजा लोहगढ़ के किले का दरवाजा
तोड़ने के लिए हाथी को शराब पीलाकर भेजने की योजना बना रहे थे तो गुरू साहिब जी ने
इस दुनीचँद को हाथी का मुकाबला करने के लिए कहा किन्तु डर का मारा दुनीचँद
रातों-रात ही गायब हो गया। घर पहुँचने पर उसकी साँप द्वारा काटने पर मृत्यु हो गई।
माझे क्षेत्र में दुनीचँद की बड़ी बदनामी हो रही थी। इसलिए दुनीचँद के पोते भाई अनूप
सिंघ जी और भाई सरूप सिंघ जी ने श्री आनँदपुर साहिब जी पहुँचकर गुरू साहिब जी से
दुनीचंद की हरकत की माफी माँगी। भाई अनूप सिंघ जी पालीवाल जट थे। उनका दादा दुनीचँद
भाई सालो का पोता था। भाई सालो जी ने गुरू घर की बहुत सेवा की थी। चाहे दुनीचँद ने
बुजदिली दिखाई और वह डर के मारे भाग गया, पर उसके पोते बहुत ही दिलेर, बहादुर और
जँगजूँ तबीयत के योद्धा थे। अब वह गुरू साहिब जी के पास रहने और सेवा करने लग गए।
जब गुरू जी श्री आनँदगढ़ साहिब जी को छोड़कर निरमोहगढ़ की पहाड़ी पर चले गए तो यह दोनों
भी गुरू साहिब जी के साथ ही रहे। 8 अक्टूबर 1700 के दिन जब बिलासपुर के राजा
अजमेरचँद ने बहुत बड़ी फौज के साथ श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी पर हमला कर दिया
तो भाई अनूप सिंघ जी ने ओर साथियों के साथ मिलकर पहाड़ी फौजों का मुकाबला किया। इस
समय बहुत ही जबरदस्त लड़ाई हुई। हाथों-हाथ लड़ाई में भाई अनूप सिंघ जी ने तगड़ा मुकाबला
करते हुए कई पहाड़ियों का मौत के साथ साक्षात्कार करवा दिया और आप भी शहीद हो गए।