25. भाई देवा सिंघ जी
भाई देवा सिंघ जी भी 8 अक्टूबर 1700 के दिन निरमोहगढ़ की लड़ाई
में शहीद हुए थे। भाई देवा सिंघ जी भाई तेगा सिंघ जी के पुत्र, भाई सुखीआ के पोते
और भाई मांडन के पड़पोते थे। आप राठौर राजपूत ख़ानदान से संबंध रखते थे। आपका परिवार
गुरू घर से कई पीढ़ियों से जुड़ा हुआ था। इस परिवार के बहुत सारे लोग गुरू साहिब जी
की फौज में शामिल थे। भाई देवा सिंघ जी के दादा भाई सुखीआ जी ने महिराज की लड़ाई में
शहीदी हासिल की थी। भाई देवा सिंघ जी के पड़दादा जी भी रूहीला की लड़ाई में बहुत ही
डटकर लड़े और सख्त जख्मी हो गए थे। भाई सुखीआ जी भाई मनी सिंघ जी के सगे फूफा थे।
भाई देवा सिंघ जी श्री गुरू गोबिन्द साहिब जी की फौज के बहादुर सिपाही थे। वो गुरू
साहिब जी के साथ श्री आनँदपुर साहिब जी में ही रहते थे। अगस्त 1700 में बिलासपुर के
राजा अजमेरचँद ने श्री आनँदपुर साहिब जी पर हमला कर दिया। 29 अगस्त से लेकर पहली
सितम्बर 1700 तक चार दिन के हमलों में बुरी तरह की मार खाने के बाद पहाड़ियों ने गुरू
साहिब जी से अरज की कि लोगों में उनकी नाक रखने के लिए श्री आनँदपुर साहिब कुछ समय
के लिए खाली कर दें। गुरू साहिब जी पहाड़ियों के फरेब से वाकिफ थे। पर उनके सिक्खों
द्वारा जोर देने पर 2 अक्टूबर को श्री आनँदगढ़ गुरू साहिब जी ने छोड़ दिया और श्री
कीरतपुर साहिब जी के कुछ आगे गाँव हरदे और निरमोह के नजदीक एक पहाड़ी पर जाकर डेरा
डाल दिया। जब अजमेरचँद को यह पता लगा तो उसने अहसान फरामोशी करते हुए निरमोहगढ़ में
गुरू साहिब जी पर हमला करने के लिए कूच कर दिया। जब उसने एक बड़ी फौज लेकर हमला कर
दिया तो भाई देवा सिंघ जी और उनके साथी सिंघों ने पहाड़ियों के खिलाफ जबरदस्त लड़ाई
की। इस समय 1000 सिंघ मौजूद थे और भाई देवा सिंघ जी आगे की पंक्ति में आकर लड़ रहे
थे। उन्होंने बहुत से पहाड़ी सैनिकों की गरदनें उड़ा दीं और आप भी शहीद हो गए।