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23. भाई साहिब सिंघ बिछर जी

  • नामः भाई साहिब सिंघ बिछर जी
    पिता का नामः शहीद भाई मती दास जी
    दादा का नामः भाई हीरामल जी
    पड़दादा का नामः द्वारका दास जी
    किस परिवार से संबंधः बिछर-ब्राहम्ण खानदान
    सिक्खी में जुड़ेः श्री गुरू नानक देव पातशाह जी के समय से
    कब शहीद हुएः 8 अक्टूबर 1700
    कहाँ शहीद हुएः किला निरमोहगढ़
    किसके खिलाफ लड़ेः बिलासपुर के राजा अजमेरचँद

भाई साहिब सिंघ दीवान 8 अक्टूबर 1700 के दिन निरमोहगढ़ में शहीद हुए थे। भाई साहिब सिंघ बिछर जी शहीद भाई मती दास जी के पुत्र, भाई हीरामल जी के पोते और द्वारका दास के पड़पोते थे। आप बिछर ब्राहम्ण खानदान से संबंध रखते थे। आपका परिवार श्री गुरू नानक पातशाह के समय से ही सिक्ख पँथ के साथ जुड़ा हुआ था। भाई द्वारका दास के दादा भाई गौतम, जिनको बाबा गौतम रामदास भी कहा जाता है, को श्री गुरू नानक देव साहिब जी ने पौठार के इलाके के लिए सिक्ख धर्म का प्रचाकर बनाया था। उन्हीं दिनों आप गाँव करिआला में रहा करते थे। भाई द्वारका दास के पिता भाई परागा जी श्री गुरू हरिगोबिन्द साहिब जी के समय रूहीला के युद्ध में शहीद हुए थे। भाई साहिब सिंघ बिछर जी के पिता भाई मतीदास जी श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के साथ 11 नवम्बर 1675 के दिन दिल्ली के चाँदनी चौक में शहीद हुए थे। यह सारा परिवार ही गुरू घर का बहुत ही नजदीकी था। भाई साहिब सिंघ बिछर जी के दादा भाई हीराचँद के बड़े भाई, भाई दरगह मल जी चार गुरू साहिबानों (सातवें से दसवें नानक तक) के दीवान (वजीर) रहे थे। उनकी मृत्यु के बाद गुरू साहिब जी ने उनके पुत्र भाई धर्म सिंघ और भाई साहिब सिंघ जी को अपना दीवान बनाया था। अगस्त 1700 में बिलासपुर के राजा अजमेरचँद ने श्री आनँदपुर साहिब जी पर हमला कर दिया। 29 अगस्त से लेकर पहली सितम्बर 1700 तक चार दिन के हमलों में बुरी तरह के मार खाने के बाद पहाड़ियों ने गुरू साहिब जी से अरज की कि लोगों में उनकी नाक रखने के लिए श्री आनँदपुर साहिब कुछ समय के लिए खाली कर दें। गुरू साहिब जी पहाड़ियों के फरेब से वाकिफ थे। पर उनके सिक्खों द्वारा जोर देने पर 2 अक्टूबर को श्री आनँदगढ़ गुरू साहिब जी ने छोड़ दिया और श्री कीरतपुर साहिब जी के कुछ आगे गाँव हरदे और निरमोह के नजदीक एक पहाड़ी पर जाकर डेरा डाल दिया। जब अजमेरचँद को यह पता लगा तो उसने अहसान फरामोशी करते हुए निरमोहगढ़ में गुरू साहिब जी पर हमला करने के लिए कूच कर दिया। जब उसने एक बड़ी फौज लेकर हमला कर दिया तो भाई साहब सिंघ जी और उनके साथी सिंघों ने पहाड़ियों के खिलाफ जबरदस्त लड़ाई की। इस समय 1000 सिंघ मौजूद थे और भाई साहिब सिंघ बिछर जी आगे की पंक्ति में आकर लड़ रहे थे। इस मौके पर पहाड़ी फौजों ने एकदम से गोलाबारी प्रारम्भ कर दी। एक गोली सीधी आकर भाई साहिब सिंघ बिछर जी के माथे में लगी, जिससे भाई साहिब सिंघ बिछर जी शहीद हो गए। उनकी शहीदी के बाद पहाड़ी फौजों ने उनके शरीर को घेर लिया किन्तु सिंघों ने वो उत्पात मचाया कि पहाड़ी फौजें पीछे हटने पर मजबूर हो गईं। गुरू साहिब जी आप भाई साहिब सिंघ बिछर जी के मृत शरीर को उठाकर लाए और उनका अन्तिम सँस्कार निरमोहगढ़ की टिब्बी के नजदीक ही कर दिया गया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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