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20. भाई आलिम सिंघ जी चौहर-बरदार

  • नामः भाई आलिम सिंघ जी
    पिता का नामः भाई दरिआ
    भाई आलिम सिंघ के पिता भाई दरिया भाई मनी सिंघ के दादा शहीद भाई बल्लू जी के भाई थे।
    दादा का नामः भाई मूला
    पड़दादा का नामः भाई राओ
    किस परिवार से संबंधः परमार-राजपूत खानदान
    भाई आलिम सिंघ चौहर-बरदार जी के 13 पुत्र थे
    आपके पुत्र नंद सिंघ जी ने दो दिन पहले ही 30 अगस्त 1700 के दिन फतिहगढ़ किले के बाहर हुई लड़ाई में शहीदी पाई थी।
    आपके सबसे छोटे बेटे गुलजार सिंघ जी अपने चाचा भाई मनी सिंघ जी के साथ 24 जून 1734 के दिन शहीद हुए थे।
    कब शहीद हुएः पहली सितम्बर 1700
    कहाँ शहीद हुएः किला लोहगढ़ में बाहर
    किसके खिलाफ लड़ेः बिलासपुर के राजा अजमेरचँद

भाई आलिम सिंघ जी ने पहली सितम्बर 1700 के दिन किला लोहगढ़ में बाहर जूझते हुए मैदान में शहीदी प्राप्त की थी। भाई आलिम सिंघ जी भाई दरिआ के सुपुत्र, भाई मूला के पोते और भाई राओ के पड़पोते थे। आप परमार-राजपूत खानदान से संबंध रखते थे। भाई आलिम सिंघ के पिता भाई दरिया भाई मनी सिंघ के दादा शहीद भाई बल्लू जी के भाई थे। भाई दरिआ श्री गुरू हरिराए साहिब जी और श्री गुरू हरिक्रशन साहिब जी के बड़े नजदीकी थे। भाई आलिम सिंघ, भाई दरीआ के 9 पुत्रों में से एक थे। भाई आलिम सिंघ जी श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी के दरबार में खास स्थान रखते थे। आप गुरू जी के चौहर बरदार थे। आपने अपना बहुत समय गुरू साहिब जी के साथ ही बिताया करते थे। भाई आलिम सिंघ जी चाहे बड़ी उम्र के थे परन्तु उनमें नौजवानों वाली फूर्ति थी और यौद्धाओं वाली दिलेरी भी। वो एक बहादुर और एक हिम्मती शख्स थे। अगस्त 1700 के आखिर में बिलासपुर के राजा अजमेरचँद ने श्री आनँदपुर साहिब जी पर हमला कर दिया। तीन दिन की हार पर खीजकर उसने चौथे दिन पहली दिसम्बर को चौथे किले लोहगढ़ पर हमला कर दिया। लोहगढ़ किले का दरवाजा बहुत ही मजबूत था। इस दरवाजे को तोड़ने के लिए पहाड़ी राजाओं ने एक हाथी को शराब पीलाकर मस्त कर दिया और उसे दरवाजे की तरफ भेजा। इतनी देर में ही सिक्ख किले में से निकलकर हाथी की तरफ चरन गँगा के मैदान की तरफ बढ़े। भाई बचितर सिंघ जी के नागनी बरछे ने हाथी को पीछे की तरफ दोड़ा दिया और भाई उदै सिंघ जी ने अजमेरचँद के मामा केसरीचँद का सिर कलम कर दिया और कटे हुए सिर को बरछे पर टाँगकर किला आनँदगढ़ साहिब जी ले गया। इस लड़ाई में भाई आलिम सिंघ चौहर बरदार, भाई सुक्खा सिंघ, भाई कुशाल सिंघ और कई सिंघ शहीदी पा गए।

नोटः भाई आलिम सिंघ चौहर-बरदार जी के 13 पुत्र थेः
1. भाई हुक्म सिंघ जी
2. भाई मान सिंघ जी
3. भाई महिंगा सिंघ जी
4. भाई चंदा सिंघ जी
5. भाई नंदा सिंघ जी
6. भाई गेंदा सिंघ जी
7. भाई जैसल सिंघ जी
8. भाई हेम सिंघ जी
9. भाई सावल सिंघ जी
10 भाई दिआल सिंघ जी
11 भाई नंद सिंघ जी
12. भाई जीत सिघ जी और
13. भाई गुलजार सिंघ जी
इनमें से नंद सिंघ जी ने दो दिन पहले ही 30 अगस्त 1700 के दिन फतिहगढ़ किले के बाहर हुई लड़ाई में शहीदी पाई थी। आपके सबसे छोटे बेटे गुलजार सिंघ जी अपने चाचा भाई मनी सिंघ जी के साथ 24 जून 1734 के दिन शहीद हुए थे। भाई आलिम सिंघ के दो बड़े बेटों भाई हुक्म सिंघ और भाई मान सिंघ की औलाद में से कई आजकल गाँव ठीकरीवाला (जिला संगरूर) में रह रहे थे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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