2. भाई जीत मल जी
भाई जीत मल जी, भाई साधू के पुत्र और भाई धरमा खेसला के पोते
थे। आपकी माता बीबी वीरो जी श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी की पुत्री थीं। भाई जीतमल
जी ने भँगाणी की लड़ाई जो 18 सितम्बर 1688 में लड़ी गई थी के दिन शहीदी हासिल की। भाई
जीत मल जी श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी के श्री आनंदपुर साहिब जी में ही रहते थे। भाई
जीत मल जी श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी की बुआ के लड़के थे। जब अप्रैल 1685 में गुरू
साहिब जी ने श्री पाउँटा साहिब नगर बसाया तो आप भी गुरू साहिब जी के साथ वहाँ चले
गए। जब 1687 में गढ़वाल के राजा फ़तिहचँद शाह ने गुरू साहिब जी पर हमला किया तो भँगाणी
की लड़ाई में भाई जीत मल जी ने राजा फ़तिहचँद शाह की फौज का डटकर मुकाबला किया। गुरू
साहिब जी ने बचित्र नाटक में भाई जीत मल जी की बहादुरी का जिक्र इस प्रकार से किया
हैः
हठी जीत मलं सु गाजी गुलाबं ।।
रणं देखीऐ रंग रूपं सराबं ।।4।।
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तबं जीत मलं ।। हरी चंद भलं ।।
हिरदै ऐत मारिओ ।। सु खेतं उतारिओ ।।15।।
इस युद्व में जीतमल ने हरीचन्द को तीर मारा, पर वह तत्काल ही
घोड़े का पैंतरा बदलकर बच गया। फिर दाँव-घाव लगाते हुए, चलते-टालते हुए दोनों के तीर
चले, दोनों के घोड़ों को लगे और दोनों गिर पड़े, फिर सम्भले। फिर तीर चले, दोनों घायल
हुए, पर थोड़े, फिर दोनों के तीर चले, हरीचन्द का तीर ऐसा सख्त लगा कि जीतमल जी का
अन्त हो गया, पर हरिचन्द को ऐसे स्थान पर लगा कि वह मूर्च्छित होकर गिरा और उसके
साथी उसे उठाकर ले गये। इधर गुरू जी के योद्धा जीतमल जी के शव को उठाकर गुरू जी के
पास ले आये, जिसकी शूरवीरता को गुरू जी ने बहुत ही सराहा और आर्शीवाद दिया।