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19. भाई कुशाल सिंघ जी

  • नामः भाई कुशाल सिंघ जी
    पिता का नामः मक्खन शाह वणजारा (लुभाणा)
    दादा का नामः भाई दासा
    पड़दादा का नामः भाई अरथा
    सिक्खी में जुड़ेः श्री गुरू हरिराए साहिब जी के समय से
    कब शहीद हुएः 1 सितम्बर 1700
    कहाँ शहीद हुएः किला लोहगढ़ में बाहर चरन गँगा के मैदान में
    किसके खिलाफ लड़ेः बिलासपुर के राजा अजमेरचँद

भाई कुशाल सिंघ जी ने पहली सितम्बर 1700 के दिन किला लोहगढ़ में बाहर चरन गँगा के मैदान में शहीदी प्राप्त की थी। भाई कुशाल सिंघ जी भाई मक्खन शाह वणजारे के पुत्र, भाई दासा के पोते और भाई अरथा के पड़पोते थे। आपका परिवार श्री गुरू हरिराए साहिब जी के समय से सिक्ख पँथ के साथ जुड़ा हुआ था। जब श्री गुरू हरिराए साहिब जी कशमीर गए थे तो मक्खनशाह के काफिले के साथ ही गए थे। उस समय वो भाई मक्खन शाह के गाँव मोटा टांडा, जिसे बाद में टांडा लुभाणा कहने लग गए, में ही ठहरे थे। 1664 में श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी को प्रकट करने का ऐलान "गुरू लाधो रे" मक्खन शाह जी ने ही किया था। इसके बाद वो श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के साथ श्री अमृतसर साहिब जी और कई अन्य स्थानों पर भी गए थे। जब श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी ने खालसा प्रकट किया तो भाई मक्खन शाह के तीनो पुत्रः चंदा सिंघ, लाल सिंघ और कुशाल सिंघ ने भी खण्डे की पाहुल हासिल की। भाई कुशाल सिंघ तो गुरू साहिब जी की फौज में भी शामिल हुआ था। वह बड़ा दिलेर, बहादुर और जँगजूँ नौजवान था। वह काफी समय तक गुरू साहिब जी के पास श्री आनँदपुर साहिब जी में ही रहा। पहली सितम्बर 1700 के दिन जब बिलासपुर के राजा अजमेरचँद ने श्री आनँदपुर साहिब के किले लोहगढ़ पर हमला कर दिया तो भाई कुशाल सिंघ जी किले के अन्दर ही थे। इस मौके पर हुई लड़ाई में भाई मनी सिंघ, भाई बचितर सिंघ, भाई उदै सिंघ, भाई आलम सिंघ सोधरीआ, भाई आलम सिंघ परमार चौबरदार, भाई सुख्खा सिंघ और भाई कुशाल सिंघ बड़ी बहादुरी के साथ लड़े और बहुत सारे फौजियों को मौत के घाट उतार दिया और शाम तक अजमेचँद कायरों की तरह अपने बचे-खुचे सिपाहियों के साथ मैदान-ऐ-जँग से भाग गया। इस लड़ाई में भाई कुशाल सिंघ जी कई सिंघों के साथ शहीद हो गए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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