18. भाई घरबारा सिंघ जी
भाई घरबारा सिंघ जी ने भी 31 अगस्त 1700 के दिन किला अगंमगढ़ में
बाहर शहीदी प्राप्त की थी। भाई घरबारा सिंघ जी भाई नानू सिंघ दिलवाली के पुत्र, भाई
बाघा के पोते और भाई उमैदा के पड़पोते थे। यह परिवार छठवें गुरू श्री गुरू
हरिगोबिन्द साहिब जी के समय से ही पँथ के साथ जुड़ा हुआ था। एक मौके मुताबिक यह
परिवार श्री गुरू नानक देव साहिब जी के समय सिक्ख पँथ में शामिल हुआ था। भाई उमैदा
के पिता भाई कलिआणा गुरू साहिब के दरबारी सिक्खों में से एक थे। उन्होंने मौहल्ला
दिलवाली में एक धर्मशाला कायम की हुई थी। इस स्थान पर आम सिक्ख ही नहीं, गुरू साहिब
जी भी आकर ठहरते थे। ग्वालियर के किले में नजरबँद होने से पहले श्री गुरू
हरिगोबिन्द साहिब जी इस स्थान पर रहकर गए थे। 1664 में और 1670 में श्री गुरू तेग
बहादर साहिब जी भी इस स्थान पर आकर रहे थे। यह इस इलाके का सबसे बड़ा पँथक केन्द्र
था। यह परिवार छींबा बिरादरी के साथ संबंध रखता था। भाई कलियाण जी के दो पुत्र थेः
भाई उमैदा और भाई जैदा। 31 अगस्त 1700 के दिन बिलासपुर के राजा अजमेरचँद ने एक बड़ी
फौज लेकर अगंमगढ़ के किले पर हमला कर दिया। वो 29 अगस्त को तारागढ़ और 30 अगस्त को
फतिहगढ़ किलों पर हमले करके बहुत सारे सिपाही मरवाकर हारकर भाग गया। 31 अगस्त को
अजमेरचँद की एक बड़ी फौज ने अगंमगढ़ किले पर पर हमला कर दिया। इस मौके पर सिक्खों ने
उसका डटकर मुकाबला किया। यह लड़ाई 4-5 घंटे तक चलती रही। बहुत सारे सिपाही मरवाकर
अजमेरचँद मैदान छोड़कर भाग गया। इस लड़ाई में बहुत से पहाड़ी हमलावर मारे गए। इस मौके
पर कुछ सिंघ भी शहीद हो गए, जिनमें भाई घरबारा सिंघ जी भी शामिल थे।