17. भाई बाघ सिंघ जी
भाई बाघ सिंघ जी ने 31 अगस्त 1700 के दिन किला अगंमगढ़ में बाहर
शहीदी प्राप्त की थी। भाई बाघ सिंघ जी भाई राए सिंघ जी के पुत्र, भाई माईदास जी के
पोते और शहीद बल्लू के पड़पोते थे। भाई बाघ सिंघ जी के पिता भाई राए सिंघ भाई माईदास
के 12 पुत्रों में से ग्याहरवें नम्बर के थे। भाई राए सिंघ जी के भाई, भाई दयाला जी
जो कि श्री तेग बहादर साहिब जी के साथ दिल्ली के चाँदनी चौक में शहीद हुए थे। इसी
प्रकार से उसका भाई हठीचँद भी 1687 में भँगाणी के युद्ध में शहीद हो चुके थे। इसके
बाद उसके दो भाई, भाई मनी सिंघ और भाई जगत सिंघ 24 जून 1734 के दिन शहीद हुए थे।
उसका एक भाई, भाई लहणा 1696 में गुलेर की लड़ाई में शहीद हुआ था। भाई राए सिंघ जी आप
गुरू साहिब जी के पास खास दरबारियों में से एक थे। वो 1705 की मार्च तक गुरू साहिब
जी के पास श्री आनँदपुर साहिब जी ही रहे और फिर गुरू साहिब जी का हुक्म होने पर
लाहौर के पास महल-माड़ी गाँव में जाकर रहने लग गए थे। बाद में राए सिंघ आप भी दोनों
पुत्रों, भाई महां सिंघ और भाई सीतल सिंघ के साथ माझे के सिंघों की टूटी गंढी के
लिए 29 दिसम्बर 1705 के दिन बिदराणे की ढाब के पास शहीद हुए थे। भाई राए सिंघ जी के
चौथे पुत्र भाई सुखा सिंघ पहली सितम्बर 1700 के दिन किला लोहगढ़ साहिब में शहीद हुए
थे। 31 अगस्त 1700 के दिन बिलासपुर के राजा अजमेरचँद ने एक बड़ी फौज लेकर अगंमगढ़ के
किले पर हमला कर दिया। वो 29 अगस्त को तारागढ़ और 30 अगस्त को फतिहगढ़ किलों पर हमले
करके बहुत सारे सिपाही मरवाकर हारकर भाग गया। 31 अगस्त को अजमेरचँद की एक बड़ी फौज
ने अगंमगढ़ किले पर पर हमला कर दिया। इस मौके पर सिक्खों ने उसका डटकर मुकाबला किया।
यह लड़ाई 4-5 घंटे तक चलती रही। बहुत सारे सिपाही मरवाकर अजमेरचँद मैदान छोड़कर भाग
गया। इस लड़ाई में बहुत से पहाड़ी हमलावर मारे गए। इस मौके पर कुछ सिंघ भी शहीद हो गए,
जिनमें भाई बाघ सिंघ जी भी शामिल थे।