15. भाई जवाहर सिंघ जी
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नामः भाई जवाहर सिंघ जी
पिता का नामः भाई लख्खीशाह वणजारा
दादा का नामः भाई गोधू
पड़दादा का नामः भाई ठाकर
भाई मनी सिंघ जी से संबंधः साले साहिब (मनी सिंघ जी इनके जीजा थे)
बहिन का नामः बसंत कौर जी (इनके पति भाई मनी सिंघ जी थे)
किस परिवार से संबंधः यादव-राजपूत
किस युद्ध में शहीद हुएः किला फतिहगढ़ के युद्ध में
कब शहीद हुएः 30 अगस्त 1700
कहाँ शहीद हुएः किला फतिहगढ़ के बाहर, श्री आनँदपुर साहिब जी
किसके खिलाफ लड़ेः बिलासपुर के पहाड़ी राजा अजमेरचँद
भाई जवाहर सिंघ जी ने भी 30 अगस्त 1700 के दिन किला फतिहगढ़,
आनँदपुर साहिब जी के बाहर हुई लड़ाई में "शहीदी जाम" पिया था। भाई जवाहर सिंघ जी "भाई
लख्खी राए" वणजारा के पुत्र, भाई गोधू के पोते और भाई ठाकर के पड़पोते थे। भाई लख्खी
राए वणजारा के 8 पुत्र और एक पुत्री थी। जवाहर सिंघ इनके 8 पुत्रों में से सबसे छोटे
थे। भाई लख्खी राए जी की एक ही पुत्री बीबी सीतो बाई (अमृतपान करने के बाद बसंत कौर
जी) का विवाह भाई मनी सिंघ जी के साथ हुआ था। वैसे भाई जवाहर सिंघ जी भाई मनी सिंघ
जी के सगे साले भी थे। यह भाई लख्खी राए जी वही थे जिन्होंने 12 नवम्बर 1675 के दिन
नौवें श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के पवित्र धड़ का अन्तिम सँस्कार अपने घर को आग
लगाकर किया था। गुरू साहिब जी की शहीदी के बाद गुरू साहिब जी का पवित्र धड़ चाँदनी
चौक से लाने के लिए भाई लख्खी राए जी और उनके तीन बड़े पुत्र नगाहीआ सिंघ, भाई हेमा
(हेम सिंघ) और भाई हाड़ी (हाड़ी सिंघ) अपनी गाड़ियों का काफिला लेकर गए थे। भाई लख्खी
राए जी यादव-राजपूत थे। वह एक बहुत बड़े वणजारे (व्यापारी) थे। और उनके पास बहुत
दौलत थी। यह परिवार गुरू घर से बहुत समय से जुड़ा हुआ था। भाई लख्खी राए जी के बड़े
भाई कीरत का पुत्र भाई गुरदास, श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के साथ काफी समय रहा
था। 30 अगस्त के दिन जब अजमेरचँद ने किला फतिहगढ़ पर हमला किया तो भाई जवाहर सिंघ ने
औरों के साथ मिलकर हमलावरों के खूब सिर उतारे। सात-आठ घंटे की इस लड़ाई में कई पहाड़ी
सिपाहियों को मार दिया और लड़ते-लड़ते आप भी शहीद हो गए।