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14. भाई भगवान सिंघ जी

  • नामः भाई भगवान सिंघ जी
    पुत्रों के नामः भाई खानूं सिंघ और भाई नानू सिंघ
    पिता का नामः भाई मनी सिंघ जी
    दादा का नामः भाई माईदास जी
    पड़दादा का नामः शहीद भाई बल्लू जी
    कब शहीद हुएः 30 अगस्त 1700
    कहाँ शहीद हुएः किला फतिहगढ़ में
    किसके खिलाफ लड़ेः बिलासपुर के राजा अजमेरचँद की फौजों के खिलाफ

भाई भगवान सिंघ जी 30 अगस्त के दिन किला फतिहगढ़ (उदों पिण्ड सहेटा की हदूद), अनँदगढ़ साहिब में शहीद हुए। भाई भगवान सिंघ जी, भाई मनी सिंघ के पुत्र, भाई माईदास जी के पोते और शहीद भाई बल्लू जी के पड़पोते थे। आप भाई मनी सिंघ जी के दस पुत्रों में से आठवें नम्बर पर थे। शहीदी के समय आपका विवाह हो चुका था। आप जी के दो पुत्र थे, भाई खानूं सिंघ और भाई नानू सिंघ। आप जी की शहीदी के बाद भी भाई खानूं सिंघ पँथ जी सेवा करते रहे। भाई खानूं सिंघ के पाँच पुत्र थेः भाई गुरदास सिंघ, भाई हरी सिंघ, भाई करम सिंघ, भाई बिजै सिंघ और भाई हरदास सिंघ। इनमें से सबसे बड़े भाई गुरदास सिंघ जी थे। भाई गुरदास सिंघ के आगे 13 पुत्र थे। भाई संत सिंघ सबसे बड़े थे। इन सबकी औलाद थी और अब यह एक बहुत बड़ा परिवार है और कई तरफ फैला हुआ है। भाई मनी सिंघ जी ने अपने दस में से पाँच पुत्र गुरू की भेंट चड़ाए हुए थे। यह थे: अजब सिंघ, अजाइब सिंघ, अनक सिंघ, बचितर सिंघ, उदै सिंघ। पर परमात्मा का हुक्म देखों, इन पाँचों के अलावा भाई बचितर सिंघ, भाई गुरबख्स सिंघ और भाई भगवान सिंघ जी भी पँथ के लिए शहीदियाँ पा गए। जब 1689 में श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी ने श्री आनँदपुर साहिब जी के आसपास पाँच किले बनाने शुरू किए तो उन्होंने सरोटा गाँव की हद में तैयार हो रहे इस फतिहगढ़ किले की जत्थेदारी भाई भगवान सिंघ जी को सौंपी। सन 1700 तक इस किले की अभी तीन ही बाहियाँ तैयार हुई थीं। इसकी श्री आनँदपुर जी की तरफ दीवार अभी पुरी नहीं हुई थी। 29 अगस्त 1700 के दिन अजमेरचँद की फौजों ने किला तारागढ़ में हार खाने के बाद अगले दिन 30 अगस्त की सुबह की इस किला फतिहगढ़ पर हमला कर दिया। एक तरफ से किला अधूरा होने के कारण सिक्खों को खूले मैदान में आकर सामना करना पड़ा। उस दिन सात आठ घंटे (लगभग ढाई पहर) तक बड़ी ही धमासान लड़ाई हुई। यह जँग उस समय तक होती रही जब तक सूर्य छिप नहीं गया। इस लड़ाई में अजमेरचँद की फौज का बहुत नुक्सान हुआ। पर इसके साथ ही कई सिंघों ने भी शहीदियाँ पाईं। शहीद होने वालों में जत्थेदार भगवान सिंघ, भाई जवाहर सिंघ और भाई नँद सिंघ जी भी थे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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