11. भाई ईशर सिंघ जी
भाई ईशर सिंघ जी 1700 में तारागढ़ किले की लड़ाई में बिलासपुर के
राजा अजमेर चँद की फौजों के साथ लड़ते हुए शहीद हुए थे। भाई ईशर सिंघ जी भाई केवल
सिंघ जी के पुत्र, भाई आंडू के पोते और भाई जगना जी के पड़पोते थे। भाई जगना भाई
भगवाना के पुत्र, भाई रूपा जी के पोते और भाई रणमल के पड़पोते थे। भाई रणमल
राठौर-राजपूत परिवार से संबंध रखते थे। भाई रणमल का ताऊ भाई ऊदा भी गुरू साहिब के
खास सिक्खों में से एक था। इसका पोता भाई सुखीआ माँडन भाई (जो कि गुरू हरगोबिन्द
साहिब जी के समय में युद्ध में शहीद हुए थे) भाई मनी सिंघ जी का फूफा लगता था। भाई
ईशर सिंघ जी होरीं लाडवा (अब हरियाणा) के रहने वाल थे। यह परिवार श्री गुरू अरजन
देव साहिब जी के समय से ही गुरू साहिब जी का श्रद्धालू रहा था। जब छठवें गुरू साहिब
श्री गुरू हरगोबिन्द सिंघ साहिब जी ने फौज का गठन किया तो इस परिवार में से बहुत
सारे लोग गुरू साहिब जी की फौज में शामिल हुए थे। भाई रणमल के पोते भाई फत्तू और
भाई अमीआ, दोनों ने करतारपुर की लड़ाई में शहीदी पाई थी। इनके बड़े भाई जग्गू जी ने
भी फगवाड़ा की लड़ाई में शहीदी पाई थी। इन तीनों शहीदों के भाई खेमा चँदनीआं का पुत्र
और इनका भतीजा भाई ऊदा जी श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के खास सिक्खों में से एक
था। जब गुरू साहिब जी कशमीरी पंडितों की पुकार लेकर दिल्ली गए तो यह भाई ऊदा भी
दिल्ली गया था। भाई ऊदा 1688 के दिन भँगाणी की लड़ाई में शहीद हो गया था। भाई ईशर
सिंघ जी की "शहीदी" के बाद भी यह परिवार सिक्ख पँथ की सेवा करता आ रहा था। भाई ईशर
सिंघ जी का छोटा भाई 1700 में निरमोहगढ़ में शहीद हुआ था। भाई ईशर सिंघ जी के बड़े
भाई कीरत सिंघ जी का पुत्र करन सिंघ 1709 के दिन श्री अमृतसर साहिब जी की लड़ाई में
शहीद हुआ था। इसके अलावा इस परिवार ने और कई शहीदियाँ हासिल की हैं।
आइए अब भाई ईशर सिंघ जी की शहीदी के बारे में बात करते हैः
भाई ईशर सिंघ जी की शहीदी अगस्त 1700 में किला तारागढ़ की सुरक्षा करते समय हुई थी।
यह किला तारागढ़ श्री आनंदपुर साहिब जी से पाँच किलोमीटर की दूरी पर गाँव तारापुर की
जूह में सन 1690 में ही तैयार होना प्रारम्भ हुआ था। अगस्त 1700 में बिलासपुर के
राजा अजमेरचँद ने सुबह-सुबह अचानक ही इस किले पर हमला कर दिया था। उस समय साहिबजादा
अजीत सिंघ जी की कमान में थोड़े से ही सिक्ख मौजूद थे। इन सभी ने हमलावरों का डटकर
मुकाबला किया। यह लड़ाई तकरीबन 2 घंटे तक चलती रही। इतने में ही इस हमले की खबर किला
अनंदगढ़ में भी पहुँच गई। वहाँ से श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी ने भाई उदे सिंघ
जी की कमान में सवा सौ सिंघ और भेजे। आखिर में अजमेर चँद ने मैदान छोड़ दिया और भाग
गया। इस लड़ाई में भाई ईशर सिंघ जी, भाई मंगत सिंघ जी और भाई कलिआण सिंघ जी आदि ने
शहीदियाँ हासिल कीं।