1. भाई ऊदा जी
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नामः भाई ऊदा जी
पिता का नामः भाई खेमा चंदनिया
दादा का नामः धरमा के पोते
पड़दादा का नामः भाई भोजा के पड़पोते
किस खानदान से संबंध हैः राठौर-रातपूत परिवार
भाई ऊदा जी भाई रणमल जी के वँश में से थे।
यह परिवार लाडवा, जिला कुरूक्षेत्र में रहते था।
भाई सुखीआ माँडन भी इन्हीं के वँश से संबंध रखते हैं।
भाई मनी सिंघ परिवार के साथ भी इनकी दूर या पास की रिशतेदारी थी।
सिक्ख पंथ से कब जुड़ेः गुरू अरजन देव साहिब जी के समय से
परिवार में से शहीदः दो ताऊ, फत्तेचंद और भाई जग्गू, एक चाचा भाई अमीआ जी (करतारपुर
की लड़ाई)
किस लड़ाई में शहीद हुएः भँगाणी,
कब शहीद हुएः 1687
किसके वंश से संबंधित थेः भाई रणमल जी के वंश से
भाई ऊदा जी भाई खेमा चँदनियाँ के पुत्र, भाई धरमा के पोते और
भाई भोजा के पड़पोते थे। आप राठौर-राजपूत परिवार से संबंध रखते थे। आपका परिवार श्री
गुरू अरजन देव साहिब जी के समय से ही सिक्खी से जुड़ा हुआ था। जब श्री गुरू
हरगोबिन्द साहिब जी ने फौज का गठन किया तो इस परिवार के कई लोग उस फौज में शामिल
हुए। आपके दो ताऊ (भाई फत्तेचँद और भाई जग्गू जी) और एक चाचा (भाई अमीआ जी) श्री
करतारपुर साहिब जी की लड़ाई और फगवाड़े की लड़ाई में शहीद हुए थे। भाई ऊदा जी, श्री
गुरू तेग बहादर साहिब जी के साथ बहुत स्नेह रखते थे। वह चक्क नानकी (श्री आनंदपुर
साहिब जी) आते रहते थे। 25 मई 1675 के दिन जब भाई किरपाराम दत्त के साथ कशमीर के 16
ब्राहम्ण श्री गुरू तेग बहादर साहिब के पास हिन्द की खातिर मदद माँगने गए थे तो गुरू
साहिब जी ने औरँगज़ेब को मिलने का फैसला किया। 8 जुलाई को श्री गुरू गोबिन्द सिंघ
साहिब जी से विदा लेकर श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी जाने के लिए तैयार हुए तो उनके
साथ भाई दयाला जी, भाई मतीदास, भाई सतीदास जी, भाई गुरदित्ता जी के साथ भाई ऊदा जी
भी थे। गुरू साहिब जी की शहीदी के बाद भाई जैता जी (भाई जीवन सिंघ) गुरू साहिब जी
का शीश लेकर दिल्ली से श्री कीरतपुर साहिब जी प्रस्थान करने लगे तो उनके साथ भाई ऊदा
जी भी थे। भाई ऊदा जी श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी की फौज में भर्ती हुए। 1685
में गुरू साहिब जी ने जब श्री पाउँटा साहिब नगर बसाया तो भाई ऊदा जी भी गुरू साहिब
जी के साथ ही रहे। 1687 में जब गढ़वाल के राजा फ़तिहचँद शाह ने गुरू साहिब जी पर हमला
किया तो भँगाणी की लड़ाई में भाई ऊदा जी ने राजा फ़तिहचँद शाह की फौज का डटकर मुकाबला
किया। कई दुशमनों का सिर काटने के बाद भाई ऊदा जी भी शहीदी जाम पी गए।