8. भाई किशना जी
भाई किशना जी ने भी करतारपुर (जालँधर) की लड़ाई में शहीदी जाम पीया था। भाई किशना
जी, भाई कौलदास (कउला) के सुपुत्र, भाई अंबीआ जी के पोते और भाई ऊदै सिंघ जी के
पड़पोते थे। आप चौहान राजपूत परिवार से संबंध रखते थे। भाई ऊदै सिंघ करन का परिवार
श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के समय से ही गुरू घर के साथ जुड़ा हुआ था। किशना जी के
भाई पदमा के पिता कौलदास अक्सर छठवें गुरू साहिब श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के
पास ही रहा करते थे। जब श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ग्वालियर के किले से पहली बार
श्री अमृतसर साहिब जी आए तो भाई कौलदास उनके साथ ही थे। जब गुरू हरगोबिन्द साहिब जी
ने फौज का गठन किया तो इस फौज में भाई पदमा, भाई किशना, भाई पदमा के सुपुत्र भाई
जग्गू भी शामिल हुए।
श्री अमृतसर साहिब जी की लड़ाईः जिस समय गुरू हरगोबिन्द
साहिब जी अपनी बेटी बीबी वीरो जी के विवाह की तैयारियों में व्यस्त थे। तभी
कुलीटखान जो गर्वनर था, ने अपने फौजदार मुखलिस खान को 7 हजार की फौज के साथए अमृतसर
पर धावा बोलने के लिए भेजा। शाही फौज श्री अमृतसर साहिब जी आ पहुँची। गुरू जी को
इतनी जल्दी हमले की उम्मीद नहीं थी। इस लड़ाई में भाई किशना जी ने बहुत ही बहादुरी
के साथ मुगल फौजों का सामना किया और इस युद्ध में गुरू साहिब जी विजय रहे।
महिराज का युद्धः इसी प्रकार जब गुरू साहिब जी ने महिराज
की लड़ाई लड़ी तब भी भाई किशना जी ने बहुत ही बहादुरी का परियच दिया और दुशमनों के
खेमें में खूब मारकाट मचाई।
करतारपुर का युद्धः इसी प्रकार जब पैंदे खान मुगल फौजों
को करतारपुर (जालँधर) पर चढ़ा ले आया तो श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के पास बहुत
सारे सिक्ख योद्धा मोजूद थे। इस समय मुगल फौजों की गिनती चाहे बहुत ज्यादा थी परन्तु
सिक्ख योद्धाओं ने वो मारकाट मचाई कि मुगल फौज पीछे हटने लगी। इस मौके पर भाई किशना
जी ने भी बहादुरी के जौहर दिखाए और बहुत से मुगलों को मौत की नींद सुलाकर आप भी
शहीदी प्राप्त की।