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7. भाई लख्खू जी

भाई लख्खू जी श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के समय में एक प्रमुख सिक्ख थे। वह गुरू साहिब जी की फौज के एक बहादुर सिपाही भी थे। वह गुरू साहिब जी की लड़ाईयों में सबसे आगे की पँक्ति में डटकर मुकाबला करते थे। जब पैंदे खान मुगल फौजों को करतारपुर (जालँधर) पर चढ़ा ले आया तो श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के पास बहुत सारे सिक्ख योद्धा मोजूद थे। युद्ध की सम्भावना को देखते हुए गुरू जी ने राय जोध इत्यादि अनुयाइयों को सन्देश भेजकर समय रहते उपस्थित होने का आदेश दिया। काले खान तथा उसके सहायक सेनानायकों ने जिसमें जालन्धर का कुतुब खान भी सम्मिलित था ने, योजना अनुसार करतारपुर को घेरना प्रारम्भ कर दिया। किन्तु गुरू जी का सैन्य बल इस बातों के लिए सतर्क था, उन्होंने तुरन्त घेराबन्दी को छिन्न-भिन्न कर दिया। अब युद्ध आमने-सामने का प्रारम्भ हो गया। इस समय मुगल फौजों की गिनती चाहे बहुत ज्यादा थी परन्तु सिक्ख योद्धाओं वो मारकाट मचाई कि मुगल फौज पीछे हटने लगी। पुरे दिन घमासान युद्ध होता रहा किन्तु कोई परिणाम न निकला। अगले दिन एक सैनिक टुकड़ी का नायक अनवर खान जो कि पिछले युद्ध में मारे गये लल्लाबेग का भाई था। गुरू जी के सेनानायक को द्वँद्व युद्ध के लिए ललकारने लगा। भाई बिधिचन्द जी ने उसकी ललकार को स्वीकार किया। इस युद्ध में भले ही बिधिचन्द जी घायल हो गये किन्तु उन्होंने अनवर खान को मृत्यु शैया पर सुला दिया। सेनानायक अनवर खान की मृत्यु के तत्काल बाद ही शत्रु सेना ने पूरे जोश के साथ भरपूर आक्रमण कर दिया। इस भारी हमले को विफल करने के लिए गुरू जी की एक सैनिक टुकड़ी के नायक भाई लखू जी शहीदी प्राप्त कर गये।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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