5. श्री सोहिला घोड़ा साहिब जी
एक काबुल का रहने वाला सिक्ख करोड़ीमल था। जो गुरू जी का बहुत श्रद्धालू सिक्ख था।
संमत् 1691 (सन् 1634) में इस सिक्ख ने दो घोड़े गुरू जी को भेंट किये, जिनके नाम
दिलबाग और गुलबाग थे। बाद में गुरू जी ने उनके नाम जान भाई और सुहेला घोड़ा रखे। माता
सुलखनी को पुत्र का वर देते समय गुरू जी सुहेले घोड़े पर ही सवार थे, गुरू जी ने
सुहेले घोड़े पर ही श्री करतारपुर साहिब जी की जँग लड़ी, जँग में सुहेला जख्मी हो गया।
करतारपुर की जँग जीतने के बाद गुरू जी कीरतपुर जा रहे थे, रास्ते में घोड़े ने शरीर
त्याग दिया। घोड़े के शरीर में 600 गोलियाँ लगी थीं और सँस्कार के समय उसके शरीर से
125 किलो कास्ट मेटल निकला। छठवें गुरू, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने अपने
सिक्खों को साथ लेकर अरदास करके अपने हाथों से सुहेले घोड़े का सँस्कार किया और यह
स्थान (श्री आनंदपुर साहिब सिटी के पास, गंगुवाल रोड, जिला रोपड़) सुहेला घोड़ा जी के
नाम से प्रसिद्ध है।